Monday 21 November 2011

जो न कटे आरी से वह कटेगा बिहारी से।

 ठंड शुरू होने के साथ ही किस्म-किस्म की हिदायतों से सामना होता रहा है आपका। मौज में दी गयी हिदायतें कुछ इस तरह भी कि  "गर्म तासीर वाले मेवे का सेवन कीजिए" और फिर चलता है तो कुछ तरल पदार्थ भी आपके लिए उपलब्ध हैं। महंगाई की इस दौड़ में इन हिदायतों के सामने आने से आप थोड़ा गुस्से में जरूर आएंगे पर काहे का गुस्सा? इस मौसम में बिहार से जुड़े कुछ नारे और बिहार में उपजी कहावतों को सुनिए न, अपने आप आ जायेगी गर्मी।

सबसे पहले यह---- ""जो न कटे आरी से, वह कटेगा बिहारी से""। आरी और बिहारी वाले इस नारे का संबंध बिहार से जरूर है पर मजेदार बात यह है कि यह हिंदुस्तान और बिहार में नहीं चलता बल्कि पाकिस्तान में दौड़ता है। पाकिस्तान के करांची शहर में बिहार से गये मुसलमानों का काफी दबदबा है। वहां बड़ी हैसियत वाली पार्टी एमक्यूएम(MQM) में बिहारी मूल के नेताओं की संख्या अधिक है। चुनाव के समय पाकिस्तान में सिर्फ करांची में ही नहीं बल्कि अब कई इलाकों में भी यह नारा पूरी ताकत से गूंजता है कि "जो न कटे आरी से, वह कटे बिहारी से" । अब तो मलेशिया में भी इस नारे की जबर्दस्त अंदाज में ब्रांडिंग है। बिहारी कबाब वहां काफी लोकप्रिय है। बिहारी कबाब की ब्रांडिंग में इस नारे का खूब प्रयोग होता है। वह भी प्रीमियम क्वालिटी का कबाब। मस्त अंदाज में हैं बिहार में उपजी कुछ कहावतें। एक कहावत है----""" दमड़ी के बुलबुल टका चोथाई"""।  हिंदी में यह कहावत यूं बनती है --""नौ की लकड़ी नब्बे खर्च""। पर बिहारीपन लिए दमड़ी वाली कहावत भीतर तक जाती है। इसी तरह बिहार से उपजी एक कहावत है----"" बाप गले लबनी पूत के गले रुद्राक्ष""। बड़े मर्म के साथ है यह कहावत। बड़े स्तर पर व्यंग्य छिपा है इस बिहारी कहावत में। किसी भ्रष्ट व्यक्ति के पुत्र को सुना कर देखिए इस ठंड के मौसम में, फिर बिना गर्म तासीर वाले मेवे और तरल पदार्थ की गर्मी किस तरह से आती है। मौज भरे अंदाज में बनी इस बिहारी कहावत पर गौर कीजिए---"" सगरे खीरा खा के भेंटी तीत""। यानी पूरा आनंद ले लिया और आखिर में कह रहे मजा नहीं आया। संतोषी प्रवृत्ति किस तरह की है इस पर आधारित एक कहावत कुछ यूं है----""मार काट पिया तोरे आस""। यानी भला है बुरा जैसा भी है.। एक कहावत है---"" ठेस लगे पहाड़े, घर के फोड़ी सिलवट""।  यानी गुस्सा किसी और पर, निकले किसी पर। बिहार में उपजी कहावतों में समाज से जुड़े प्रसंगों को खास तौर पर जोड़ा गया है। सामाजिक विसंगति को दर्शाती एक कहावत है----""नोकरो के चाकर तेकरो लमेचर""। यानी नौकर के भी चाकर हैं उसके पास और यहीं चाकर के भी हैं सेवक|

आपको कैसी लगी अपनों की बोली और गाँव की भाषा को समर्पित यह लेख, जरुर बताये |(साभार --एक पत्रकार मित्र )

Saturday 19 November 2011

पलायन -- अपनों से बिछड़ने का दर्द और गरीबी की आग

                       किसी ने कहा है कि   --   
जब पैसे की तंगी से थोड़ी सी चुभन भी होती है ,
जब जिन्दगी बदतर हालातो में, लाचारी का रोना रोती है,
जब अपनों की एक झलक को, आँखे उम्मीद खो देती हैं,
जब भावनाए माथे की धूल को, अपने आशुं से धो देती है,
................तब ह्रदय का कोना-कोना अपनों की यादों में रो देती है !!
अपना घर सबकों प्यारा ही होता है | घर घास फूस की बनी हों या फिर बड़े बड़े कमरों में आधुनिक साज सज्जा के साथ ईट का बना हुआ, अपनी चीज़े अपनी ही लगती है | सुकून पाने का ख्याल अपने घर में ही आता है, दुशरे के यहाँ नहीं | दिन भर के थकान के बाद अपने परिवार के साथ रहने का और समय बिताने का मन सबका रहता है | जिन्दगी चलाने की खातिर पैसे कमाने के लिए घर छोड़ने का मन किसी का नहीं होता, लेकिन कमबख्त गरीबी के कारण भूख से बिलबिला रहे अपने और अपने परिवार के पेट की आग शांत करने के लिए घर से निकलना ही पड़ता है | सारे सपने और अरमान की बहते आशुं  की घूंट पीकर भी लोग घर से निकल पड़ते है | अपनों की यादें समेटे और उनकी भलाई व  सुनहरे भविष्य के सपने बुनते लोग घर से एक अनंत यात्रा पर, बिना किसी लक्ष्य और पूर्वनिर्धारित उदेश्यों के चल देते है |  लोग कहते भी है कि गरीबों का कोई लक्ष्य नहीं होता,उन्हें जो भी परिस्थियाँ वर्तमान स्थति से बेहतर दिखती है, वही उनके लिए उपलब्धि के समान हो जाती है | मुखिया जी ने पैसे खर्च किये है चुनाव लड़ने में, उन्हें पैसे दिए बगैर गाँव में काम नहीं मिल सकता | यहाँ तो चाय पिने और पिलाने की औकाद भी नहीं बची तो काम के लिए देने खातिर घुस के पैसे कहाँ से लायेंगी जनता? सारी सरकारी योजनायें रेडियो में सुनने भर है, बदलते भारत की गूंजती आवाज़ सिर्फ सुनाई देती है, दिखती नहीं | अगर दिखती तो कहाँ बदला मुन्ना की किस्मत मनरेगा से ? वह आज भी अकेले अपनी बीबी और 2 बच्चों की खातिर सारा दिन काम करने में लगाता है, फिर भी परिवार में न तो सुकून है और न ही ख़ुशी ! वह भी अपने बेटों को इंजीनियर बनाना चाहता है, उसे भी यह देखते हुए बड़ा फक्र महसूस होता जब उसकी बिटियां डॉक्टर बनती, वह भी ख़ुशी-ख़ुशी सपरिवार मनाली घुमने और काशी दर्शन हेतु यात्रा करने का शौक पालें हुए है | लेकिन दो समय की भूख शांत करने और अपनी जिन्दगी जीने के लिए जद्दोजहद कर रहा है |    इस परिस्थिति में घर छोड़ना मज़बूरी हो जाती है, आखिर करेंगा क्या बेचारा, अगर उसे घर में(गाँव में ) परिवार चलाने लायक कोई काम नहीं मिलेगा तो ?  ये एक मुन्ना की कहानी नहीं बल्कि हर गाँव के मुन्ना जैसे लोगों की हकीक़त है | चुनाव के समय बड़े-बड़े दावें और नारें देकर नेता बनने वालें लोग नज़र आते है | नेता बनते ही अपने घर खुशहाल करने की फ़िराक में जनता की आम समस्यायों और उनकी दैनिक परेशानियो को भूल जाते है | जब नेता और नेतृत्व ही जनता की बेहतरी के लिए उपाय करना छोड़ दें तो क्या होगा ? जब आम जनता के नाम पर राजनीति करके और गरीबी हटाओं के नारे के साथ सरकार बनाने वालें ही आम जनता की सुध लेना छोड़ दें, तब परिस्थितियां भयावह तस्वीर दिखाती है | जिस मनरेगा की ढोल पीटकर वर्तमान सरकार दुबारा सत्ता में आई, उसी के सरकार में उसी ग्रामीण विकाश मंत्रालय की जिम्मेदारी सँभालने वालें मंत्री के क्षेत्र में, जब भारत निर्माण का तो पता नहीं ग्रामीण विकाश की उजालें तक कही नहीं दिखी, तब समूचे देश का अंदाज़ा लगाया जा सकता है | ग्राम स्वराज्य और ग्राम पंचायते अपने लक्ष्यों और उदेश्यों से भटककर और सत्ता के विकेंद्रीकरण का नाजायज़ फायदा उठाकर गाँव की भलाई की वजाएं ग्रामीण जनता के मानसिक प्रताड़ना का केंद्रबिंदु सा बन गयी है | सहकारिता आन्दोलन से भी देश का कुछ ज्यादा भला नहीं हो पाया जबकि कागजों पर सहकारिता की किरण 25  करोड़ भारतीय तक पहुंची हुई बताई जाती है | मजदूरी के पैसे बैंकों से मिलने के बाबजूद काम का उचित मेहनताना नहीं मिल रहा है | पलायन का दौर जारी रहने के पीछे ये भी कारण है | पलायन सिर्फ "लुट वाली योजनायें" चलाने से नहीं बल्कि "बेरोजगार जनता की समस्यायों के छुटकारा पाने वाली योजनायें" चलाने से होंगी,जिसके लिए सरकार तैयार नहीं दिखती |   चमकते, बदलते, सँवरते भारत की पहचान गरीब और गरीबी है, लेकिन शहरों की चकाचौंध में हम इसे देख नहीं पातें | आखिर सरकार भी तो यही चाहती है कि गरीब और गरीबी बरक़रार रहे देश में, नहीं तो किस आम आदमी के हाथ के भरोसे राजनीती करेंगे ? भारत माता की जय उस आम आदमी की जय से सुरु होती है जिसने अपनी जय के साथ साथ भारत माता की जय लगाने का भी सपना पाल रखा है | अंतर बस इतना है कि वह उस उत्साह और विश्वाश के साथ जयघोष लगाने में सामर्थ्य रखते हुए भी उसकी आवाज़ उसका साथ नहीं दे रही, क्यूंकि वह चमकते और विकसित होते भारत में भी अपनी मुलभुत आवश्यकताओं रोटी, कपडा, मकान की खातिर तरस रहा है ,उससे वंचित है | आर्थिक पैकेज देने के वायदे सिर्फ कागजों तक सिमटी है और विकसित आधारभूत सरंचना के काम भविष्य के सरकारों के ठेके छोड़ दिया गया  है | देश के नव-निर्माण के काम में लगने वालें युवा और आम जनता जबतक सड़कों पर भटकते फिरेंगे तबतक हम ""भारत निर्माण"" की खोखली नारे ही लगा सकते है | पलायन का अनसुलझी कहानी ग्रामीण जनता का काम के लिए पलायन तक ही नहीं खत्म होती, बल्कि यह प्रतिभाशाली युवाओं के देश छोड़ने तक जारी है | देश में सबकुछ गलत ही नहीं हो रहा है लेकिन बहुत कुछ सही भी नहीं हो रहा है- इस बात में कोई संदेह भी नहीं है | समय की जरुरत और परिस्थति की मांग है कि स्थति बदलने के लिए गंभीर, निर्णायक और त्वरित करवाई की जाएँ, अन्यथा आन्तरिक खतरे उत्पन्न होने के साथ साथ आर्थिक महाशक्ति बनने के सपने भी मुंगेरी लाल के हसीन सपने की तरह अधूरे ही रह जायेंगे, फिर देश में कोई कलाम भी नहीं बचेंगे जो उत्साहवर्धन करते हुए दिखाई देंगे|

इसी मुद्दे पर अख़बारों की रिपोर्ट  की लिंक - विशेष संपादकीयः रोजगार तो देते नहीं, योजनाओं से नाम तो हटाएं प्रधानमंत्री- http://www.bhaskar.com/article/SPLDB-special-editorial-on-unemployment-2573949.html ,भास्कर श्रृंखला: भाग 1- हर साल काम के लिए तीन करोड़ लोग छोड़ रहे हैं घर-- http://www.bhaskar.com/article/SPLDB-out-shorted-news-series-2572730.html?SL2=, भास्कर श्रंखला: भाग 2- हजारों करोड़ की 12 योजनाएं फिर भी स्थायी काम नहीं- http://www.bhaskar.com/article/SPLDB-thousands-of-crores-2575828.html?SL2=,

Friday 18 November 2011

बिहार का सोनपुर मेला

वैशाली को दुनिया "लोकतंत्र की जननी" के तौर पर जानती है | बौद्ध धर्म ,आम्रपाली, लिच्छिवी गणराज्य, महावीर की जन्मस्थली, चार मुख वालें महादेव, हाजीपुर का केला के अलावे बहुत सारी चीज़े है वैशाली के पास जिसपर वैशाली-वाशी अपने को गौरवान्वित महसूस कर सके, लेकिन उन सब चीजों मे ऐतिहासिक,सामाजिक महत्व पर आधारित और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर लगने वालें विश्वप्रसिध "सोनेपुर मेला" वैशाली की खूबसूरती और ग्राम...ीण संस्कृति के बदौलत विकाश करने का अनुपम उदहारण प्रस्तुत करती है. शिक्षा और स्वास्थ्य को केन्द्रित गाँव में लगने वाला यह मेला समरसता का भाव पैदा करता है, दुर्भाग्य का विषय है मेला 9 नवम्बर से शुरु है लेकिन लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ चुप्पी थामें हुए है और बाकि तीनो बेबसी से इसे बर्बाद और खत्म होते देखकर भी मौन है |
सोनेपुर मेला केवल परम्परा नहीं बल्कि पौराणिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को विश्व पटल पर लाये जाने के बिहार-गौरव का परिचायक भी है। आईये आपको दैनिक जागरण और बीबीसी कि नज़रों से मेले कि सैर कराते है |
Dainik jagran link on mela:-सिर चढ़कर बोला लोक कला का जादू- http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8480581_1.html, ग्रामश्री मंडप में कलाकृति का अद्भुत नमूना- http://in.jagran.yahoo.com/news.../local/bihar/4_4_8490438_1.html, सोनपुर मेले में उमड़ी भीड़-http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8467151_1.html, स्नान घाटों पर दिखा आपसी रिश्तों का महासंगम-http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8470979_1.html, पंद्रह लाख श्रद्धालुओं ने लगायी नारायणी में डुबकी-http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8471090_1.html,नारायणी नदी में गजराज ने की जल क्रीड़ा-http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8471193_1.html,
हर उम्र के लोगों के लिए खास होगा सोनपुर मेला-http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8461834_1.html http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2011/11/111118_sonepur_mela_gallery_psa.shtml , http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2010/12/101205_sonpur_fair_mb.shtml
....आईये इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोये 
 

Monday 14 November 2011

उजड़ते परिवार, सिसकती बचपन और बाल दिवस के मायने

बचपन में जब गाँव के स्कूल पढ़ने जाता था, तब एक पंक्ति जरुर गुनगुनाते हुए लोगो से सुनता था----"गइया बकरियां चरति जाये, मुनिया बेटी पढ़ती जाये " | लेकिन आज  न तो मुनिया बेटी को घर के काम करने लायक छोड़ा गया है और न ही पढ़ने लायक | मुनिया फैसन की दौर मे आगे बढ़ने के लिए लोन लेकर पढाई कर रही है, जिसके भविष्य का कोई पता नही |  पिताजी ज़मीन बेचकर लोन चुकता कर रहे है |.....इन सबके बीच उजड़ रहा है तो बस परिवार....आखिर नेहरु के जन्मदिन पर उजड़ते परिवार की ख़ुशी में बाल-दिवस मनाने के मायने क्या है जब ऐसी भयावह परिस्थितिया देश में मौजूद है ? ... दिन-ब-दिन महंगी और आम आदमी की पहुँच से दूर होती जा रही है शिक्षा, बचपन के सपने (डॉक्टर,इंजिनियर, अधिकारी बनने के)  मिट्टी मे मिलते जा रहे है और जब बचपन सिसक-सिसक कर दम तोड़ रहा है , फिर भी हम बाल-दिवस क्यों  मना रहे है ?
नेहरु के चेलों ने तो शिक्षा के अधिकार कानून के माध्यम से पूरी शिक्षा व्यवस्था का भी मजाक उड़ाने का काम किया है और सर्व शिक्षा अभियान की कमर तोड़ कर इसे "शिक्षा के लुटेरे ठेकेदारों" के हाथो में सौप दिया है|...आम आदमी की बात कहकर सरकार चलने वालों के राज़ में शिक्षा जैसी चीज़े गरीब जनता से जब दूर होती जा रही हो, तब बाल दिवस वास्तव में अपने मायने खो बैठती है | वैसे भी काहे का बाल दिवस, जिसने बाल और उसके बचपन कि खातिर कुछ किया ही नहीं बल्कि उलटे उसके भविष्य को कश्मीर, चीन जैसी समस्यायों को जूझने के लिए छोड़ दिया  हो !

Sunday 13 November 2011


शिक्षा के गिरते स्तर का एक नमूना ...इस विडियो को देखे
http://aajtak.intoday.in/videoplay.php/videos/view/64935/2/121/Phd-in-3-days-.html 


Wednesday 2 November 2011

मोबाइल संदेशों पर से सीमाबंदी हटने तक फोरम अगेंस्ट ऑटोक्रैसी ऑफ ट्राई करेगी विरोध

ट्राई द्वारा व्यक्तिगत मोबाइल संदेशों (SMS ) की सीमा १०० से बढाकर २०० करने के फैसले का फोरम अगेंस्ट ऑटोक्रैसी ऑफ ट्राई स्वागत करती है | ट्राई से फोरम यह मांग करती है कि इस सीमाबंदी को जल्दी से जल्दी हटाये क्यूंकि इस सीमाबंदी से विद्यार्थिओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को काफी परेसानियों का सामना करना पड़ रहा है | फोरम ने देश में सर्वप्रथम इस फैसले से हो रही परेशानियो को लेकर ट्राई ऑफिस पर प्रदर्शन करके आम जनता को इस फैसले से हो रही समस्यायों कि तरफ ध्यान दिलाते हुए विद्यार्थिओं के प्रतिनिधिमंडल के साथ ट्राई अधिकारिओं को ज्ञापन सौप कर इस फैसले को तुरंत वापस लेने कि मांग की थी |

विदित हो की पिछले दिनों ट्राई ने अवांछित SMS को आने से रोकने के साथ-साथ व्यक्तिगत SMS भेजने की सीमा १०० तक सीमित करने का फैसला लिया | इस फैसले के विरोध में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने ट्राई के इस अलोकतांत्रिक ,अव्यवहारिक और तानाशाही फैसले के विरोध करने और व्यक्तिगत SMS की सीमाबंदी हटाने हेतु "फोरम अगेंस्ट ऑटोक्रैसी ऑफ ट्राई " नाम से एक फोरम बनाकर इस फैसले का लगातार विरोध कर रही है | दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय से शुरु हुआ विरोध दिल्ली विश्वविद्यालय के अन्य कॉलेज मे, JNU, जामिया सहित ४ राज्यों में पहुँच  गयी थी तथा अभी भी फोरम के समर्थन में लोग लगातार आ रहे है |
ट्राई के इस पुरे फैसले में देश में हो रही तमाम लोकतान्त्रिक आंदोलनों को दबाने तथा विद्यार्थिओं की बढती सामाजिक सक्रियता कम करने की कोशिश नजर आती है | जिसके  विरोध में न केवल विद्यार्थी शामिल है बल्कि सामाजिक  कार्यकर्ताओं का सहयोग भी फोरम को मिल रहा है | महाविद्यालाओं में सामाजिक सक्रियता इस फैसले की वजह से बाधित हुई है जिसके कारण विद्यार्थिओं में काफी गुस्सा भी है |

फोरम ट्राई से मांग करता है कि वह व्यवसायिक संदेशों पर प्रतिबन्ध लगाये तथा ग्राहकों को उसकी पसंद की कोटि को अपने हिसाब से इस्तेमाल करने की सुविधा प्रदान करें | फोरम ट्राई से मांग करता की व्यक्तिगत SMS भेजने की सीमा तय करने की वजाए ग्राहकों को यह छुट दें कि वह असीमित सन्देश अपनी आवस्यकता के अनुसार भेज सके | फोरम ट्राई से जनभावनाओं का आदर करते हुए अविलम्ब इस फैसले को वापस लेने कि मांग करती है |
फोरम सीमाबंदी हटने तक अपना विरोध जारी रखेगा , जिसके अगले चरण में व्यापक पैमाने पर हस्ताक्षर अभियान चलाकर दूरसंचार मंत्री से मिलने के साथ साथ जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन करेगी |
भवदीय 
अभिषेक  रंजन - संयोजक -फोरम अगेंस्ट ऑटोक्रैसी ऑफ ट्राई
E-mail - arkumar87lsc@gmail.com,
Faculty Of Law
Delhi University. Delhi-7
Mob.-- +91-9717167232

Tuesday 1 November 2011

ट्राई के फैसले से छात्रों में हर्ष , सीमा 500 बढ़ाने की मांग


"Forum Against Autocracy Of TRAI" ,जो ट्राई द्वारा व्यक्तिगत संदेशो को भेजने की सीमा १०० किये जाने पर विद्यार्थिओं द्वारा बनायीं गयी थी , की एक बैठक आज शाम Law Faculty दिल्ली विश्वविद्यालय मे हुई, जिसमे ट्राई द्वारा व्यक्तिगत सन्देश भेजने की सीमा बढ़ाये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की गयी|  ट्राई के इस फैसले का आशिंक समर्थन करते हुए फोरम के सदस्यों  ने  कहा की २०० सन्देश सामजिक जीवन में सक्रीय लोगों के लिए बिलकुल ही अप्रयाप्त है, जिसकी सीमा कम से कम 500 तो करनी ही चाहिए थी . वैसे  फोरम की मांग है की यह सीमाबंदी किसी भी तरीके से जायज़ नहीं है, इसलिए इसे तुरंत वापस लिया जाये |  ट्राई द्वारा सीमाबंदी किये जाने के कारण सारी सामाजिक गतिविधियाँ पर बुरा असर पड़ा है जिसके कारण विद्यार्थिओं और सामजिक कार्यकर्ताओं में इस फैसले के ख़िलाफ काफी गुस्सा है | 
विदित हो की फोरम ने सर्वप्रथम व्यक्तिगत सीमाबंदी के ख़िलाफ पहले दिन से ही ( 27 सितम्बर ) दिल्ली विश्वविद्यालय में विरोध करना प्रारंभ किया था जिसके क्रम में पिछले २१ अक्तूबर को ट्राई मुख्यालय पर छात्रों के प्रदर्शन और ट्राई अधिकारी को ज्ञापन दिया गया था | 
 ट्राई का यह फैसला सराहनीय है लेकिन फोरम अपनी लड़ाई संदेशों की सीमाबंदी हटाये  जाने तक जारी रखेगी .
फोरम ट्राई से मांग करती है की वह व्यक्तिगत संदेशों की सीमा  को समाप्त करें तथा अवांछित संदेशों से मुक्ति दिलाने हेतु ठोस उपाय  करें .
बैठक में योगेन्द्र, नमन, कमलेश ,आदित्य ,अनुराग, प्रभात, आदर्श, ब्रिज, संतोष आदि शामिल थे . 

भवदीय ,
अभिषेक  रंजन, संयोजक -  Forum Against Autocracy Of TRAI

PRESS REALESE- "Forum Against Autocracy Of TRAI" a minor triumph over autocracy of TRAI


"Forum Against Autocracy of TRAI", a forum of students against new regulation of TRAI( where we cannot send more than 100 sms/day) , held a meeting in Law Faculty, Delhi University, Where the forum members welcomed the decision of TRAI of increasing the no. of sms in a day from 100 to 200. The forum members expressed their happiness over the decision of TRAI. It is significant to inform that "Forum Against Autocracy of TRAI" have began their first ground protest from Law Faculty, DU(27 Sept.,2011) to TRAI Office(21st oct.,2011) for increasing the no of individual sms. Forum however demanded that TRAI further should increase this limit of sms from 200 to unlimited, because 200 sms is not enough to satisfy the needs of daily users especially social activists, students and common people. TRAI should consider the sentiments of the people. 

Forum members also said that their protest will continue till TRAI  limitation called-off. Anurag, Yogendra ,Adarsh,Vikash Gautam, Prabhat, Anshu, Sanjay Jha, Aditya, Brij, Santosh were present in meeting




Regards
Abhishek Ranjan- Convener- Forum Against Autocracy of TRAI

Friday 28 October 2011

Media coverage ( मीडिया के नज़रों में आन्दोलन )

दैनिक "नया इंडिया" अख़बार में छपी छोटी सी लेख :-


आन्दोलन से सम्बंधित पहली खबर दैनिक "अमर उजाला " में 27 सितम्बर, पृष्ठ संख्या -१२( राष्ट्रिय ख़बरों की पेज पर) :-


दैनिक "हिंदुस्तान" में 29 सितम्बर, पृष्ठ संख्या-5 पर  छपी खबर :-

दैनिक "नयी दुनिया" में २२ अक्टूबर को छपी खबर :-



दैनिक "राष्ट्रिय सहारा " में २२ अक्टूबर को छपी खबर :-
दैनिक "लोकसत्य " में 21 अक्टूबर को छपी खबर :-

दैनिक "जनसत्ता"  में 3 नवम्बर,पृष्ठ संख्या -4, को    छपी खबर :-


Saturday 22 October 2011

व्यक्तिगत SMS की सीमाबंदी के ख़िलाफ प्रदर्शन, TRAI द्वारा नीतियों पर पुनर्विचार का आश्वासन

नयी दिल्ली ,21 अक्टूबर, शुक्रवार  

एक दिन में 100 एसएमएस भेजने की सीमाबंदी से संबंधित ट्राई के अव्यवहारिक और अलोकतांत्रिक फैसले के ख़िलाफ आज विद्यार्थियों ने  फोरम अगेंस्ट ऑटोक्रैसी ऑफ ट्राई(Forum Against Autocracy Of TRAI) के बैनर तले ट्राई मुख्यालय,रामलीला मैदान पहुँचकर अपना विरोध दर्ज कराया और तुरंत इस फैसले  को वापस लेने की मांग की .

विदित हो की ट्राई के इस नए नियमों से सामाजिक गतिविधियों में शामिल विद्यार्थियों के सम्मुख काफी संकट खड़े हो गए है , क्यूंकि नए नियम उन्हें ज्यादा से ज्यादा लोगो से संपर्क रखने में बाधक बन रही है . ट्राई के इस जनविरोधी फैसले में देश में चल रही लोकतान्त्रिक गतिविधियों को ठप करने और युवाओं की सक्रियता को समाप्त करने के तौर पर फोरम देखती है. विरोध प्रदर्शन के माध्यम से फोरम इस फैसले में छिपी अंदरूनी साजिश के बारे में जन-जागरण फैलाना चाहती है कि किस प्रकार से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमलें किये जा रहे है. विरोध प्रदर्शन के दौरान ही ट्राई के अधिकारियों को एक ज्ञापन भी सौपा गया जिसमे उनसे व्यक्तिगत एसएमएस की सीमाबंदी तुरंत हटाने की मांग की गयी . ट्राई के अधिकारी जो ज्ञापन लेने आए थे, ट्राई मुख्यालय गेट पर विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों से मिलकर इस समस्या का जल्दी से जल्दी समाधान करने हेतु विचार करने का आश्वासन दिया. अधिकारीयों ने समय तय करके अपना पक्ष रखने हेतु फोरम के सदस्यों को बुलाने की भी बात कही.
विरोध प्रदर्शन में विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्र अपना विरोध दर्ज कराने हेतु मौजूद थे. फोरम ट्राई द्वारा इस फैसले के वापिस लेने तक अपना विरोध जारी रखने का फैसला किया है,जिसके अगले चरण में देश भर के कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में संपर्क करने की घोषणा भी की गयी है, ताकि विषय को पुरे देश के विद्यार्थी समुदाय तक पहुचाया जा सके. फोरम समाज के अन्य प्रबुद्ध वर्ग, बुद्धिजिवियों, समाजसेवियों से भी इस फैसले के विरोध में फोरम द्वारा चलाये जा रहे अभियान के लिए समर्थन मांगेगा .
प्रदर्शन में मुख्य तौर पर कुंदन कुमार(JNU ), संतोष दुबे, बृजचन्द्र किशोर , योगेन्द्र, आशीष, आदर्श सिंह, आदित्य कुमार, कमलेश  मिश्र, शशांक ,सिद्धार्थ, अनुराग कुमार, अंशु सहित 36 विद्यार्थी मौजूद थे .

संख्या पक्ष में भले ही कमजोर हो लेकिन मुद्दे पर अधिकांश विद्यार्थियों का समर्थन हमें प्राप्त है .

कार्यक्रम की कुछ तस्वीरें :-

         


                         ट्राई गेट पर विरोध कर रहे विद्यार्थी ( Students Protest @ TRAI gate)



                   
                          ट्राई अधिकारीयों से मुद्दे पर बातचीत (discussing on issue with TRAI officials)


                                  ज्ञापन (scan copy of memorandum)  


                     ट्राई कार्यालय द्वारा प्राप्त की गयी ज्ञापन की अधिकारिक पुष्टि (Official            acknowledgement by TRAI office) 

दिल्ली जैसे व्यस्त शहरों में भी अगर मुद्दा आधारित लड़ाई लड़ी जाये तो बिना पैसे खर्च करवाये भी  लोग साथ देते है..बहुत ही आभारी है उन सभी दोस्तों का जिन्होंने व्यक्तिगत जीवन के व्यस्त समयों में से कुछ समय इस विरोध प्रदर्शन के लिए निकाला, लेकिन सबसे ज्यादा धन्यवाद उन्हें जो किसी कारणवश आज शामिल नहीं हो पाए,लेकिन आशा है भविष्य में चलने वाली संघर्ष रूपी वाहन के सारथी जरुर बनेंगे. हमारा यह संघर्ष पाबन्दी हटने तक जारी रहेगा,ये फर्जी दलाली राजनीती करनेवालें व्यक्ति का बयान नहीं बल्कि इस मुद्दे को लेकर अंतिम समय तक लड़ने के फौलादी विश्वास से  भरे दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों का अटल मानसिक  सामर्थ्य  बोल रहा है.  ट्राई के व्यक्तिगत एसएमएस के सीमाबंदी के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई भले ही मीडिया प्रायोजित न हो, आर्थिक दृष्टि से भलें कमजोर दीखता हों, बिना किसी भारी-भरकम प्रचार व्यवस्था और अन्य साधनों से लैस न हो,परन्तु यह तो तय है कि
 
                           "बात जब उठी है ,तब दूर तलक जाएगी.....

Monday 17 October 2011

युवाओं को संकुचित करती ट्राई के नियम

हाल में ही दिल्ली में हुए आतंकवादी हमले के अगले दिन एक सन्देश मोबाइल पर  खूब आ रहा था कि,
 मातम छाया है शहर में, भरा भीड़ से है श्मसान ,
कोई पूछे तो कह देना , हो रहा है भारत निर्माण ".
                        
                      सुबह सुबह किसी के मोबाइल पर यह सन्देश निश्चित तौर पर उसके अंतरात्मा को झकझोर देने वाला है.लेकिन अंतरात्मा को झकझोरने वाली ऐसे सन्देश अब आपके मोबाइल पर आने बंद हो गए है  क्यूंकि तथाकथित  आन्तरिक सुरक्षा और आम जनता की परेशानी को ध्यान में रखते हुए सरकार इसपर आंशिक प्रतिबन्ध लगा चुकी  है. अब आप अपने हितैषियों को खुद को पसंद आनेवालीअपने ख़ुशी को बढ़ाने वाली पार्टियों की निमंत्रण वाली, सामाजिक कार्यक्रमों में रूचि रखने वालों को, अपने किसी कार्यक्रम में निमंत्रण वाली सन्देश भेजने का अधिकार को खो चुके  है,क्यूंकि सरकार को यह लगता  है कि यह सब अप्रासंगिक और परेशानी का कारण है .
सरकार जनता का  ध्यान  देश मे  व्याप्त अन्य सभी मुद्दे की  तरफ से  हटाकर उसके मौलिक अधिकारों मे ही कटौती कर रही है. संपत्ति की अधिकार की तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार छिनने की जो साजिश चल रही है उसके तरफ जनता का ध्यान न होना चिंता का विषय है.

 कुछ साधारण सवाल उठते है इस स्थति में,जो सायद आपके मन में भी उठने चाहिए कि :---

*** आखिर  जिस सुरक्षा के नाम पर यह किया जा रहा है उसका मकसद ठीक है ?  Bulk SMS को  रोकने के नाम पर आम   मोबाइलधारको  पर  लगाई जा रही   यह बंदिश कही हमारी आवाज़ को दबाने की साजिश तो नहीं है ?
*** व्यापारिक(Commercial ) उदेश्यों से प्रेरित सन्देश अगर कोई नहीं देखना चाहता तो उसे मुक्ति मिलनी चाहिए लेकिन जिसका उदेश्य सामाजिक या आपसी विचारों का आदान-प्रदान करना है उसपर प्रतिबन्ध क्यूँ?  आखिर व्यापारिक उदेश्यों को लेकर सन्देश भेजने वाली कंपनियां अधिकतम सिम का उपयोग करके ग्राहकों को और अधिक परेशान नहीं करेगी ,इसका भरोसा कौन देगा ? व्यापारिक उदेश्यों को पूरा करने के लक्ष्य को लेकर भेजे जाने वाले संदेशो पर रोक लगाया जा सकता है, आम जनता के बीच संपर्क के सस्ता और सुविधाजनक माध्यम sms पर सीमाबंदी करना कहाँ  तक उचित  है ?
*** ग्राहकों को ऐसी सुविधा देने पर क्यूँ विचार नहीं किया जा सकता जिसमे उन्हें आप्शन चुनने की पूरी आज़ादी हो कि वह किसका सन्देश पढना चाहता है और किसका नहीं,वजाए सन्देश भेजने की प्रक्रिया को ही सीमित करने के उदेश्य से प्रतिबन्ध लगाने के ?
***  क्या यह आपसी संवाद को कम करके असामाजिक बनाने की दिशा में नहीं ले जायेगा  ?  युवा चाहे अपनी ही दुनिया में व्यस्त रहे या सामाजिक दुनियादारी से मतलब रखे,कही न कही वह मोबाइल का उपयोग करता है , अब जबकि लक्ष्मण रेखा खीच  दी गयी है तब उसके खाली समय का दुरुपयोग नहीं होगा,ये कैसे माना जा सकता है
>>> इसकी क्या गारंटी है की इस प्रकार के प्रतिबन्ध लगाने से फालतू सन्देश आने बंद हो जायेंगे, जबकि सरकार अपने नियमों के द्वारा उन्हें छुट देने पर भविष्य में सोच सकती है ?  पैसे कमाने के लिए कंपनियां कुछ भी करने को तैयार रहती है ,फिर फालतू मैंसज नहीं आएंगे इसकी प्रमाणिक गारंटी कौन देगा ?
*** सामाजिक रूप से सक्रीय लोग जो अमूमन आर्थिक रूप से कमजोर होते है, उनकी आवाज़ को दबाने की यह साजिश तो नहीं   है ?  क्यूंकि MSG नहीं भेज पाने की दशा में वह कॉल कर पाने में ज्यादा सक्षम नहीं हो पाएंगे, इससे उनका सामाजिक सक्रियता अपने आप कम या खत्म हो जाएगी.
*** सरकार की इस संस्था का कहना है कि अधिकारिक छुट्टियों (15 अगस्त, 26 जनवरी आदी दिनों में) के दिन इस बंदिश में छुट मिलेगी तो क्या हम अधिकारिक छुट्टियों के ही दिन अपने मित्रोंपरिवार के सदस्यों और सुभचिन्तकों को सन्देश भेज पाने का अधिकार  पाएंगे ?  ध्यान रहे, अधिकारिक छुट्टियों के दिन सन्देश भेजने पर अधिक जेब ढीले करने पड़ते हैतो क्या किसी दिन विशेष को अधिकतम सन्देश भेजने की छुट का दूरसंचार कंपनियां नाजायज़ फायदा नहीं उठाएगी ?
>>> क्या यह हमारी मूल अधिकारों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण करने का षड़यंत्र तो नहीं है, जिसमे हमें दूसरों से सुरक्षा के नाम पर संवाद करने से रोका जा रहा है?
              
यह किसी वैसे युवा के मन में उठी विचार से ज्यादा सरोकार नहीं रखती जो अपनी महिलामित्र (गर्लफ्रेंड) को लगातार मैसेज न कर पाने  के दुःख से दुखित है बल्कि सामाजिक जीवन में सक्रीय सभी लोगो की व्यथा का प्रतिनिधित्व करती है. हम सरकार के सुरक्षा के दृष्टि से उठाये जा रहे हर कदम का समर्थन करते है, परन्तु इस तरह के तालिबानी निर्णय जबरदस्ती थोपने को कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता क्यूंकिक्या पता वर्तमान निर्णय के लागु होने के बाद हमें यह भी आदेश मिले कि आप एक दिन मे 100 कॉल, 100 ईमेल नहीं कर सकते, क्यूंकि आजकल ब्लास्ट करने के बाद आतंकवादी ईमेल करके सूचनाये देते है तो मेल पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया जाए ?
ऐसे समय मे जबकि देश में कुछ लोगो का व्यवस्थागत कमजोरियों को दूर करने का आन्दोलन चल रहा है वैसे समय मे वर्तमान मंत्रिमंडल के सबसे काबिल मंत्री के मंत्रालय द्वारा लागु की जाने वाली इस योजना से कही न कही यह संदेह उठाना स्वाभाविक है कि देश में चल रहे जनतांत्रिक आंदोलनों को दबाने के लिए तथा युवाओं की बढती सक्रियता को कम करने का यह साजिश तो नहीं है ?
अगर आपको लगता है की वास्तव मे यह संवेदनशील मामला है तो सजग नागरिक होने के नाते इसका उचित निष्कर्ष निकलना जरुरी है की -क्या ऐसे ही आदेश हम झेलते रहेंगे?
सवाल १०० sms  भेजने या न भेजने की नहीं हैसवाल है- इस प्रकार के अघोषित प्रतिबन्ध क्यों?  क्या हम तालिबान में रहते है या चीन मेयह तय करना बहुत जरुरी है जहाँ आम आदमी को एक दुसरे से संपर्क करने के सबसे सरल माध्यम मोबाइल SMS (सन्देश) भेजने पर भी पाबन्दी लगायी जा रही है.

छात्र समुदाय और आम जन विशेषकर सामाजिक कार्यों में सक्रीय आम नागरिकों से अपील है कि इस बंदिश के ख़िलाफ चल रहे  आन्दोलन को अपना समर्थन व सहयोग दे. जबतक ट्राई  इस निर्णय को वापस नहीं लें लेती, तबतक विद्यार्थी अपना आन्दोलन जारी रखेंगे .

Fight against Unconstitutional Regulations of TRAI




The new regulation issued by TRAI restricting mobile users to send 100 SMS per day per Sim prima facei is Unconstitutional. This regulation clearly infringed the fundamental rights guaranteed to citizens of India under Part III of the Constitution. Article 19 of the Constitution provides for freedom of speech and expression and Article 21 talks about right to life and personal liberty. This SMS cap or limit set by TRAI is not only Ulta Vires to the Constitution but also made mockery of democracy.

I agree that this step which has been taken by TRAI is to provide relief to mobile phone users from unsolicited and pesky calls and SMS by telemarketers. I appreciate that TRAI has taken steps to eradicate this long standing problem, however the way it chooses is not correct. A normal mobile phone user should not suffer in order to curb the flood of messages from telemarketers. He should not be restricted till the time he is not violating any law and using the services available as an honest user by paying the price and discharging his duty.

Why should a normal user where majority of it are youngsters sending text to their friends and family in this 21st century be barred by sending more than 100 SMS a day and where every service provider by targeting the youth market had introduced bulk SMS pack. Is the normal user who should have to sacrifices his wishes and desires to send more SMS to their loved ones just to get rid of telemarketing messages? Is this the only solution we have.

Nowadays messages doesn't restrict to only a medium of chatting, with the changing time social awareness messages like to fight against corruption, blood donation, educational program and various others have made its place in every individuals inbox, now with 100 messages restriction one can hardly contemplate such social awareness messages to be spread among masses. Moreover in this rapid changing environment when people left with meager time for their friends and family they prefer to send invites of parties and meetings through messages as this is the fastest and cheapest way of communication, However this bar imposed by TRAI would deter people to send bulk messages and they would not be able to interact much now with their friends and family.

Human chain and basic unity among people is the main basic structure of our constitution which says in its Preamble "to promote among them all
 FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the unity and integrity of the Nation". This bar is a dent on working of people who want to create human chain through social networking and henceforth and obstruction in rising, shining, stronger India. Hence this bar of 100 messages could only be sent in a day is a complete infringement of peoples right and must be revoked without giving it a single thought.

This regulation has created a kind of dissatisfaction and hatred among the youth of this nation. Evidence can be drawn from various social networking sites and forums, where every individual is talking against this regulation and hopeful for its revocation. Moreover, World Health Organization (WHO) issued in the public interest that use more text and calls as talking more on phone can cause Ear Cancer, now with this regulation how can you expect a person to use more text than calls when the bar is imposed. 

I, therefore as a vigilant civilian would like to urge you on behalf on millions of mobile users who are really addictive to text rather than calls to kindly reconsider the imposed regulation and try to come with user friendly solution to repose peoples belief in the governmental norms. 
( Inputs from my classmate)

Saturday 15 October 2011

Photographs of Protest & signature campaign (विरोध प्रदर्शन और हस्ताक्षर अभियान )की Photo

विरोध प्रदर्शन 

एसएमएस पर की गयी सीमाबंदी से परेशान विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा  अखिल भारतीय स्तर पर ट्राई के फैसले का  विरोध  शुरू हो गया है.  ट्राई के अलोकतांत्रिक और गैरवाजिब फैसले के खिलाफ हो रहे विरोध का लोगों का व्यापक समर्थन मिलना इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त  है कि,  लोग हर हाल में इस फैसले को वापिस लेने के पक्ष  में है ...छुट्टियों में घर गए छात्र-छात्राओं के वापस कॉलेज  लौटते ही ट्राई के फैसले के खिलाफ जिस प्रकार से नाराजगी देखने को मिल रही है उससे यह साफ है की युवाशक्ति इस निर्णय के खिलाफ होनेवालें संघर्ष में अपना योगदान जरुर  सुनिश्चित करवाएंगे . 
हमारे  पास लगातार विरोध के समर्थन में तस्वीरें आ रही है, संख्या पक्ष में ये तस्वीरें भले ही कुछ कमजोर दीखते हो परन्तु इनके हौसले हमें अपनी मुकाम तक पहुचने में मदद करेंगे,ऐसा विश्वास है . 

1st Protest outside Delhi @ Muzaffarpur .Bihar {विरोध की कड़ी में पहली तस्वीर मुजफ्फरपुर से आयी है(साभार- राजेश जी )

Protest @ Gwalior {ग्वालियर में हुए विरोध प्रदर्शन की तस्वीरे (साभार:-अंशु,जैन कॉलेज )}

Protest @ Dehradun, Uttarakhand  {देहरादून में हुए विरोध प्रदर्शन की तस्वीरें ( साभार :- अंशु ) }


 protest @ Sri  Venkateswara ( वेंकी) college ,Delhi  University   में हुए प्रदर्शन की तस्वीर 

Protest @ Hindu College,du {हिन्दू कॉलेज में हुए विरोध प्रदर्शन की तस्वीर ( साभार नीरज & नौशाद )} :-

day 1st protest @Law Faculty on 27 sept,2011

Friday 14 October 2011

Big Game Behind Undemocratic Regulation

Recently day after the terrorist attack in Delhi this message was on the lips of every one

˝” Matam Chhaya Hai Sheher Mein, Bhara Bheed Se Hai Shamshaan,
                     Koi Puchhe Toh Keh Dena ,Ho Raha Hai Bharat Nirman .””
This message on one’s mobile will certainly agonize the conscience of a person. But such heart rending messages will no more flash on your screen as the government has put partial restrictions on it citing the issues of internal security and problems faced by common man. Now you are deprived of your rights to send messages of your likes, messages spreading joy, invitations for parties, social events etc. to your well-wishers as our government feels it is irrelevant and a cause of trouble. At a time when the government is hit from all four sides it is taking its attention away from other problems of common man and is falling hard on the rights of the citizens. There are other issues too that are in dire need of a solution but the government is heedless towards such issues. It is not a matter of intricate understanding that to what conspiracy is the government pointing at when the issues of inflation, corruption, terrorism, unemployment, hunger pose a herculean task before the government. Government is trying to place restrictions on the number of messages that we can send so as to frustrate youth.
Today when the entire globe is taking the form of a village, India is not much behind in this age of communication. Utility of mobile phone is proving extremely useful to connect people with one another in this age of communication. The unpractical and anti-public decision taken by TRAI to limit the number of mobile messages has angered youth. A nonagenarian or a young child does not send messages then why put restrictions on something which is indispensable for youth.  If the technology is being misused then why not restrict the sale of SIM card which is sold for as less as the price of potatoes. Why is the youth being misled by the irresistible prices of SIM cards and call rates? The recent clarification made by the government made it amply clear that the government’s intention is to chain common man and not to control the unduly profit making attitude of the corporate companies. Government is deciding to relax companies to send as many commercial messages after charging some fees and considering some conditions. It makes it clear that common man will still be receiving those perplexing messages. Even today after the rule has been put in effect commercial messages continue to ring their way to our mobile phones. In a country where there is open encroachment in the area of SPECTRUM, rather than restricting the rights of common people government should focus on improving those weak areas owing to which enemies of our nation leak information.
3 important points to understand-
1) POLITICAL - A new wave has swept the country –to voice opinions against the flawed policies of the government using mobile phones. Issues like corruption are adding fuel to the fire to this sort of psychology; we want our societies to be free from the evils of these issues, and texting each other so as to gather in huge masses for rallies and stage demonstrations.
2) SOCIALl- Due to the recent spark ignited by Anna and Baba Ramdev, Youth is particularly agitated against the scandalous deeds of the government, rather than taking open routes to express the present plight of the society they have opted social networking sites as an effective tool to voice their opinions, suspension of ‘Musafir Baitha’ in Bihar is an example in this context. Desultory talk on Facebook and twitter has now seen a step ahead in the form of protests on road by the youth. This regulation is the result of the plot to curb the participation of youth. The policy which came into effect in 2007 could not be implemented properly, so the wrath against the wrong policies of the government is evident. So what does this decision of the government signal at? We do not need to strain our mind to understand this.
3)Legally :- This regulation violates the article 19(1) (a) and 21 of the constitution. In the language of law, two main strengths of democracy are Expression and Communication; mobile phones in some way or the other are connected with this, then is the government strengthening or weakening the democracy by this maximum limitation? Who has given the right to the government to deem one’s personal messages as pesky ones? If you cannot send 100 messages to others then what does it guarantee that government will put a limit on the maximum number of messages that a person can receive?
Some common questions come up in this situation which probably should come to your mind as well.:---
  • Is the intention behind this move of the government in the name of the security clean? In the name of stopping bulk messages is this restraint on the mobile users a plot to quell public opinion?
  • Commercial messages if one does not wish to receive, should be banned, why ban messages purpose of which is to exchange one’s ideas and opinions? Are we assured that companies aiming to make profits by hook or crook will not vex their customers by selling more SIM cards?
  • Why cannot we consider schemes where consumer has the option to choose as to whose message to read and whose not rather than restricting the number of messages that can be sent?
  • Will this not lessen mutual communication? Is this not paving way for antisocialism by curtailing the number of messages?
  • Will this guarantee that we will stop receiving nasty messages on our phones in future?
  • Socially active people are typically economically weak, does it point toward suppressing the voice of these people? Because they are not much capable of making calls in a situation when they cannot send messages?
  • TRAI says that during festive season this restriction will be relaxed? Does it mean that we will be able to send messages to our friends, family members and well-wishers only on festivals? Mind you, on the day of the festivals we are required to shell out more money than usual. Will this not open an opportunity to make undue profits for telecom companies?
  • Is this a plot to curb our fundamental rights indirectly in the name of security where we our free communication is being prevented?
This thought does not spring from the mind of a youth who is dejected because of the probable sadness of his inability to send messages to his girlfriend continuously. This rather represents the grief of those active in social life. We support every step of the government taken in view of the security but a Talibanic decision of this sort can never be deemed as correct. Who knows in future such policies are put in place that you cannot make more than 100 calls, cannot email more than 100 people because terrorists give information after the blast through emails?
In the present situation when people like Anna, Baba Ramdev have spearheaded movements to rid the system of structural deficiencies, then in such a scenario this decision, implemented by one of the highly minded person Kapil Sibal in the cabinet raises doubts, does the government want to stifle the voice of public movements and is bent on curbing youth participation in our democracy?
If you feel this is a sensitive issue then being an aware citizen we need to find a solution- will we keep bearing the lashes of such policies?
Question is not about sending or not sending 100 messages , question is why such unstated  restrictions? Are we living in Taliban or in China where restriction is being placed on the simplest means of communication?
Students will continue to protest against this restriction till the government withdraws its decision.