Monday 17 October 2011

युवाओं को संकुचित करती ट्राई के नियम

हाल में ही दिल्ली में हुए आतंकवादी हमले के अगले दिन एक सन्देश मोबाइल पर  खूब आ रहा था कि,
 मातम छाया है शहर में, भरा भीड़ से है श्मसान ,
कोई पूछे तो कह देना , हो रहा है भारत निर्माण ".
                        
                      सुबह सुबह किसी के मोबाइल पर यह सन्देश निश्चित तौर पर उसके अंतरात्मा को झकझोर देने वाला है.लेकिन अंतरात्मा को झकझोरने वाली ऐसे सन्देश अब आपके मोबाइल पर आने बंद हो गए है  क्यूंकि तथाकथित  आन्तरिक सुरक्षा और आम जनता की परेशानी को ध्यान में रखते हुए सरकार इसपर आंशिक प्रतिबन्ध लगा चुकी  है. अब आप अपने हितैषियों को खुद को पसंद आनेवालीअपने ख़ुशी को बढ़ाने वाली पार्टियों की निमंत्रण वाली, सामाजिक कार्यक्रमों में रूचि रखने वालों को, अपने किसी कार्यक्रम में निमंत्रण वाली सन्देश भेजने का अधिकार को खो चुके  है,क्यूंकि सरकार को यह लगता  है कि यह सब अप्रासंगिक और परेशानी का कारण है .
सरकार जनता का  ध्यान  देश मे  व्याप्त अन्य सभी मुद्दे की  तरफ से  हटाकर उसके मौलिक अधिकारों मे ही कटौती कर रही है. संपत्ति की अधिकार की तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार छिनने की जो साजिश चल रही है उसके तरफ जनता का ध्यान न होना चिंता का विषय है.

 कुछ साधारण सवाल उठते है इस स्थति में,जो सायद आपके मन में भी उठने चाहिए कि :---

*** आखिर  जिस सुरक्षा के नाम पर यह किया जा रहा है उसका मकसद ठीक है ?  Bulk SMS को  रोकने के नाम पर आम   मोबाइलधारको  पर  लगाई जा रही   यह बंदिश कही हमारी आवाज़ को दबाने की साजिश तो नहीं है ?
*** व्यापारिक(Commercial ) उदेश्यों से प्रेरित सन्देश अगर कोई नहीं देखना चाहता तो उसे मुक्ति मिलनी चाहिए लेकिन जिसका उदेश्य सामाजिक या आपसी विचारों का आदान-प्रदान करना है उसपर प्रतिबन्ध क्यूँ?  आखिर व्यापारिक उदेश्यों को लेकर सन्देश भेजने वाली कंपनियां अधिकतम सिम का उपयोग करके ग्राहकों को और अधिक परेशान नहीं करेगी ,इसका भरोसा कौन देगा ? व्यापारिक उदेश्यों को पूरा करने के लक्ष्य को लेकर भेजे जाने वाले संदेशो पर रोक लगाया जा सकता है, आम जनता के बीच संपर्क के सस्ता और सुविधाजनक माध्यम sms पर सीमाबंदी करना कहाँ  तक उचित  है ?
*** ग्राहकों को ऐसी सुविधा देने पर क्यूँ विचार नहीं किया जा सकता जिसमे उन्हें आप्शन चुनने की पूरी आज़ादी हो कि वह किसका सन्देश पढना चाहता है और किसका नहीं,वजाए सन्देश भेजने की प्रक्रिया को ही सीमित करने के उदेश्य से प्रतिबन्ध लगाने के ?
***  क्या यह आपसी संवाद को कम करके असामाजिक बनाने की दिशा में नहीं ले जायेगा  ?  युवा चाहे अपनी ही दुनिया में व्यस्त रहे या सामाजिक दुनियादारी से मतलब रखे,कही न कही वह मोबाइल का उपयोग करता है , अब जबकि लक्ष्मण रेखा खीच  दी गयी है तब उसके खाली समय का दुरुपयोग नहीं होगा,ये कैसे माना जा सकता है
>>> इसकी क्या गारंटी है की इस प्रकार के प्रतिबन्ध लगाने से फालतू सन्देश आने बंद हो जायेंगे, जबकि सरकार अपने नियमों के द्वारा उन्हें छुट देने पर भविष्य में सोच सकती है ?  पैसे कमाने के लिए कंपनियां कुछ भी करने को तैयार रहती है ,फिर फालतू मैंसज नहीं आएंगे इसकी प्रमाणिक गारंटी कौन देगा ?
*** सामाजिक रूप से सक्रीय लोग जो अमूमन आर्थिक रूप से कमजोर होते है, उनकी आवाज़ को दबाने की यह साजिश तो नहीं   है ?  क्यूंकि MSG नहीं भेज पाने की दशा में वह कॉल कर पाने में ज्यादा सक्षम नहीं हो पाएंगे, इससे उनका सामाजिक सक्रियता अपने आप कम या खत्म हो जाएगी.
*** सरकार की इस संस्था का कहना है कि अधिकारिक छुट्टियों (15 अगस्त, 26 जनवरी आदी दिनों में) के दिन इस बंदिश में छुट मिलेगी तो क्या हम अधिकारिक छुट्टियों के ही दिन अपने मित्रोंपरिवार के सदस्यों और सुभचिन्तकों को सन्देश भेज पाने का अधिकार  पाएंगे ?  ध्यान रहे, अधिकारिक छुट्टियों के दिन सन्देश भेजने पर अधिक जेब ढीले करने पड़ते हैतो क्या किसी दिन विशेष को अधिकतम सन्देश भेजने की छुट का दूरसंचार कंपनियां नाजायज़ फायदा नहीं उठाएगी ?
>>> क्या यह हमारी मूल अधिकारों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण करने का षड़यंत्र तो नहीं है, जिसमे हमें दूसरों से सुरक्षा के नाम पर संवाद करने से रोका जा रहा है?
              
यह किसी वैसे युवा के मन में उठी विचार से ज्यादा सरोकार नहीं रखती जो अपनी महिलामित्र (गर्लफ्रेंड) को लगातार मैसेज न कर पाने  के दुःख से दुखित है बल्कि सामाजिक जीवन में सक्रीय सभी लोगो की व्यथा का प्रतिनिधित्व करती है. हम सरकार के सुरक्षा के दृष्टि से उठाये जा रहे हर कदम का समर्थन करते है, परन्तु इस तरह के तालिबानी निर्णय जबरदस्ती थोपने को कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता क्यूंकिक्या पता वर्तमान निर्णय के लागु होने के बाद हमें यह भी आदेश मिले कि आप एक दिन मे 100 कॉल, 100 ईमेल नहीं कर सकते, क्यूंकि आजकल ब्लास्ट करने के बाद आतंकवादी ईमेल करके सूचनाये देते है तो मेल पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया जाए ?
ऐसे समय मे जबकि देश में कुछ लोगो का व्यवस्थागत कमजोरियों को दूर करने का आन्दोलन चल रहा है वैसे समय मे वर्तमान मंत्रिमंडल के सबसे काबिल मंत्री के मंत्रालय द्वारा लागु की जाने वाली इस योजना से कही न कही यह संदेह उठाना स्वाभाविक है कि देश में चल रहे जनतांत्रिक आंदोलनों को दबाने के लिए तथा युवाओं की बढती सक्रियता को कम करने का यह साजिश तो नहीं है ?
अगर आपको लगता है की वास्तव मे यह संवेदनशील मामला है तो सजग नागरिक होने के नाते इसका उचित निष्कर्ष निकलना जरुरी है की -क्या ऐसे ही आदेश हम झेलते रहेंगे?
सवाल १०० sms  भेजने या न भेजने की नहीं हैसवाल है- इस प्रकार के अघोषित प्रतिबन्ध क्यों?  क्या हम तालिबान में रहते है या चीन मेयह तय करना बहुत जरुरी है जहाँ आम आदमी को एक दुसरे से संपर्क करने के सबसे सरल माध्यम मोबाइल SMS (सन्देश) भेजने पर भी पाबन्दी लगायी जा रही है.

छात्र समुदाय और आम जन विशेषकर सामाजिक कार्यों में सक्रीय आम नागरिकों से अपील है कि इस बंदिश के ख़िलाफ चल रहे  आन्दोलन को अपना समर्थन व सहयोग दे. जबतक ट्राई  इस निर्णय को वापस नहीं लें लेती, तबतक विद्यार्थी अपना आन्दोलन जारी रखेंगे .

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