Monday 21 November 2011

जो न कटे आरी से वह कटेगा बिहारी से।

 ठंड शुरू होने के साथ ही किस्म-किस्म की हिदायतों से सामना होता रहा है आपका। मौज में दी गयी हिदायतें कुछ इस तरह भी कि  "गर्म तासीर वाले मेवे का सेवन कीजिए" और फिर चलता है तो कुछ तरल पदार्थ भी आपके लिए उपलब्ध हैं। महंगाई की इस दौड़ में इन हिदायतों के सामने आने से आप थोड़ा गुस्से में जरूर आएंगे पर काहे का गुस्सा? इस मौसम में बिहार से जुड़े कुछ नारे और बिहार में उपजी कहावतों को सुनिए न, अपने आप आ जायेगी गर्मी।

सबसे पहले यह---- ""जो न कटे आरी से, वह कटेगा बिहारी से""। आरी और बिहारी वाले इस नारे का संबंध बिहार से जरूर है पर मजेदार बात यह है कि यह हिंदुस्तान और बिहार में नहीं चलता बल्कि पाकिस्तान में दौड़ता है। पाकिस्तान के करांची शहर में बिहार से गये मुसलमानों का काफी दबदबा है। वहां बड़ी हैसियत वाली पार्टी एमक्यूएम(MQM) में बिहारी मूल के नेताओं की संख्या अधिक है। चुनाव के समय पाकिस्तान में सिर्फ करांची में ही नहीं बल्कि अब कई इलाकों में भी यह नारा पूरी ताकत से गूंजता है कि "जो न कटे आरी से, वह कटे बिहारी से" । अब तो मलेशिया में भी इस नारे की जबर्दस्त अंदाज में ब्रांडिंग है। बिहारी कबाब वहां काफी लोकप्रिय है। बिहारी कबाब की ब्रांडिंग में इस नारे का खूब प्रयोग होता है। वह भी प्रीमियम क्वालिटी का कबाब। मस्त अंदाज में हैं बिहार में उपजी कुछ कहावतें। एक कहावत है----""" दमड़ी के बुलबुल टका चोथाई"""।  हिंदी में यह कहावत यूं बनती है --""नौ की लकड़ी नब्बे खर्च""। पर बिहारीपन लिए दमड़ी वाली कहावत भीतर तक जाती है। इसी तरह बिहार से उपजी एक कहावत है----"" बाप गले लबनी पूत के गले रुद्राक्ष""। बड़े मर्म के साथ है यह कहावत। बड़े स्तर पर व्यंग्य छिपा है इस बिहारी कहावत में। किसी भ्रष्ट व्यक्ति के पुत्र को सुना कर देखिए इस ठंड के मौसम में, फिर बिना गर्म तासीर वाले मेवे और तरल पदार्थ की गर्मी किस तरह से आती है। मौज भरे अंदाज में बनी इस बिहारी कहावत पर गौर कीजिए---"" सगरे खीरा खा के भेंटी तीत""। यानी पूरा आनंद ले लिया और आखिर में कह रहे मजा नहीं आया। संतोषी प्रवृत्ति किस तरह की है इस पर आधारित एक कहावत कुछ यूं है----""मार काट पिया तोरे आस""। यानी भला है बुरा जैसा भी है.। एक कहावत है---"" ठेस लगे पहाड़े, घर के फोड़ी सिलवट""।  यानी गुस्सा किसी और पर, निकले किसी पर। बिहार में उपजी कहावतों में समाज से जुड़े प्रसंगों को खास तौर पर जोड़ा गया है। सामाजिक विसंगति को दर्शाती एक कहावत है----""नोकरो के चाकर तेकरो लमेचर""। यानी नौकर के भी चाकर हैं उसके पास और यहीं चाकर के भी हैं सेवक|

आपको कैसी लगी अपनों की बोली और गाँव की भाषा को समर्पित यह लेख, जरुर बताये |(साभार --एक पत्रकार मित्र )

Saturday 19 November 2011

पलायन -- अपनों से बिछड़ने का दर्द और गरीबी की आग

                       किसी ने कहा है कि   --   
जब पैसे की तंगी से थोड़ी सी चुभन भी होती है ,
जब जिन्दगी बदतर हालातो में, लाचारी का रोना रोती है,
जब अपनों की एक झलक को, आँखे उम्मीद खो देती हैं,
जब भावनाए माथे की धूल को, अपने आशुं से धो देती है,
................तब ह्रदय का कोना-कोना अपनों की यादों में रो देती है !!
अपना घर सबकों प्यारा ही होता है | घर घास फूस की बनी हों या फिर बड़े बड़े कमरों में आधुनिक साज सज्जा के साथ ईट का बना हुआ, अपनी चीज़े अपनी ही लगती है | सुकून पाने का ख्याल अपने घर में ही आता है, दुशरे के यहाँ नहीं | दिन भर के थकान के बाद अपने परिवार के साथ रहने का और समय बिताने का मन सबका रहता है | जिन्दगी चलाने की खातिर पैसे कमाने के लिए घर छोड़ने का मन किसी का नहीं होता, लेकिन कमबख्त गरीबी के कारण भूख से बिलबिला रहे अपने और अपने परिवार के पेट की आग शांत करने के लिए घर से निकलना ही पड़ता है | सारे सपने और अरमान की बहते आशुं  की घूंट पीकर भी लोग घर से निकल पड़ते है | अपनों की यादें समेटे और उनकी भलाई व  सुनहरे भविष्य के सपने बुनते लोग घर से एक अनंत यात्रा पर, बिना किसी लक्ष्य और पूर्वनिर्धारित उदेश्यों के चल देते है |  लोग कहते भी है कि गरीबों का कोई लक्ष्य नहीं होता,उन्हें जो भी परिस्थियाँ वर्तमान स्थति से बेहतर दिखती है, वही उनके लिए उपलब्धि के समान हो जाती है | मुखिया जी ने पैसे खर्च किये है चुनाव लड़ने में, उन्हें पैसे दिए बगैर गाँव में काम नहीं मिल सकता | यहाँ तो चाय पिने और पिलाने की औकाद भी नहीं बची तो काम के लिए देने खातिर घुस के पैसे कहाँ से लायेंगी जनता? सारी सरकारी योजनायें रेडियो में सुनने भर है, बदलते भारत की गूंजती आवाज़ सिर्फ सुनाई देती है, दिखती नहीं | अगर दिखती तो कहाँ बदला मुन्ना की किस्मत मनरेगा से ? वह आज भी अकेले अपनी बीबी और 2 बच्चों की खातिर सारा दिन काम करने में लगाता है, फिर भी परिवार में न तो सुकून है और न ही ख़ुशी ! वह भी अपने बेटों को इंजीनियर बनाना चाहता है, उसे भी यह देखते हुए बड़ा फक्र महसूस होता जब उसकी बिटियां डॉक्टर बनती, वह भी ख़ुशी-ख़ुशी सपरिवार मनाली घुमने और काशी दर्शन हेतु यात्रा करने का शौक पालें हुए है | लेकिन दो समय की भूख शांत करने और अपनी जिन्दगी जीने के लिए जद्दोजहद कर रहा है |    इस परिस्थिति में घर छोड़ना मज़बूरी हो जाती है, आखिर करेंगा क्या बेचारा, अगर उसे घर में(गाँव में ) परिवार चलाने लायक कोई काम नहीं मिलेगा तो ?  ये एक मुन्ना की कहानी नहीं बल्कि हर गाँव के मुन्ना जैसे लोगों की हकीक़त है | चुनाव के समय बड़े-बड़े दावें और नारें देकर नेता बनने वालें लोग नज़र आते है | नेता बनते ही अपने घर खुशहाल करने की फ़िराक में जनता की आम समस्यायों और उनकी दैनिक परेशानियो को भूल जाते है | जब नेता और नेतृत्व ही जनता की बेहतरी के लिए उपाय करना छोड़ दें तो क्या होगा ? जब आम जनता के नाम पर राजनीति करके और गरीबी हटाओं के नारे के साथ सरकार बनाने वालें ही आम जनता की सुध लेना छोड़ दें, तब परिस्थितियां भयावह तस्वीर दिखाती है | जिस मनरेगा की ढोल पीटकर वर्तमान सरकार दुबारा सत्ता में आई, उसी के सरकार में उसी ग्रामीण विकाश मंत्रालय की जिम्मेदारी सँभालने वालें मंत्री के क्षेत्र में, जब भारत निर्माण का तो पता नहीं ग्रामीण विकाश की उजालें तक कही नहीं दिखी, तब समूचे देश का अंदाज़ा लगाया जा सकता है | ग्राम स्वराज्य और ग्राम पंचायते अपने लक्ष्यों और उदेश्यों से भटककर और सत्ता के विकेंद्रीकरण का नाजायज़ फायदा उठाकर गाँव की भलाई की वजाएं ग्रामीण जनता के मानसिक प्रताड़ना का केंद्रबिंदु सा बन गयी है | सहकारिता आन्दोलन से भी देश का कुछ ज्यादा भला नहीं हो पाया जबकि कागजों पर सहकारिता की किरण 25  करोड़ भारतीय तक पहुंची हुई बताई जाती है | मजदूरी के पैसे बैंकों से मिलने के बाबजूद काम का उचित मेहनताना नहीं मिल रहा है | पलायन का दौर जारी रहने के पीछे ये भी कारण है | पलायन सिर्फ "लुट वाली योजनायें" चलाने से नहीं बल्कि "बेरोजगार जनता की समस्यायों के छुटकारा पाने वाली योजनायें" चलाने से होंगी,जिसके लिए सरकार तैयार नहीं दिखती |   चमकते, बदलते, सँवरते भारत की पहचान गरीब और गरीबी है, लेकिन शहरों की चकाचौंध में हम इसे देख नहीं पातें | आखिर सरकार भी तो यही चाहती है कि गरीब और गरीबी बरक़रार रहे देश में, नहीं तो किस आम आदमी के हाथ के भरोसे राजनीती करेंगे ? भारत माता की जय उस आम आदमी की जय से सुरु होती है जिसने अपनी जय के साथ साथ भारत माता की जय लगाने का भी सपना पाल रखा है | अंतर बस इतना है कि वह उस उत्साह और विश्वाश के साथ जयघोष लगाने में सामर्थ्य रखते हुए भी उसकी आवाज़ उसका साथ नहीं दे रही, क्यूंकि वह चमकते और विकसित होते भारत में भी अपनी मुलभुत आवश्यकताओं रोटी, कपडा, मकान की खातिर तरस रहा है ,उससे वंचित है | आर्थिक पैकेज देने के वायदे सिर्फ कागजों तक सिमटी है और विकसित आधारभूत सरंचना के काम भविष्य के सरकारों के ठेके छोड़ दिया गया  है | देश के नव-निर्माण के काम में लगने वालें युवा और आम जनता जबतक सड़कों पर भटकते फिरेंगे तबतक हम ""भारत निर्माण"" की खोखली नारे ही लगा सकते है | पलायन का अनसुलझी कहानी ग्रामीण जनता का काम के लिए पलायन तक ही नहीं खत्म होती, बल्कि यह प्रतिभाशाली युवाओं के देश छोड़ने तक जारी है | देश में सबकुछ गलत ही नहीं हो रहा है लेकिन बहुत कुछ सही भी नहीं हो रहा है- इस बात में कोई संदेह भी नहीं है | समय की जरुरत और परिस्थति की मांग है कि स्थति बदलने के लिए गंभीर, निर्णायक और त्वरित करवाई की जाएँ, अन्यथा आन्तरिक खतरे उत्पन्न होने के साथ साथ आर्थिक महाशक्ति बनने के सपने भी मुंगेरी लाल के हसीन सपने की तरह अधूरे ही रह जायेंगे, फिर देश में कोई कलाम भी नहीं बचेंगे जो उत्साहवर्धन करते हुए दिखाई देंगे|

इसी मुद्दे पर अख़बारों की रिपोर्ट  की लिंक - विशेष संपादकीयः रोजगार तो देते नहीं, योजनाओं से नाम तो हटाएं प्रधानमंत्री- http://www.bhaskar.com/article/SPLDB-special-editorial-on-unemployment-2573949.html ,भास्कर श्रृंखला: भाग 1- हर साल काम के लिए तीन करोड़ लोग छोड़ रहे हैं घर-- http://www.bhaskar.com/article/SPLDB-out-shorted-news-series-2572730.html?SL2=, भास्कर श्रंखला: भाग 2- हजारों करोड़ की 12 योजनाएं फिर भी स्थायी काम नहीं- http://www.bhaskar.com/article/SPLDB-thousands-of-crores-2575828.html?SL2=,

Friday 18 November 2011

बिहार का सोनपुर मेला

वैशाली को दुनिया "लोकतंत्र की जननी" के तौर पर जानती है | बौद्ध धर्म ,आम्रपाली, लिच्छिवी गणराज्य, महावीर की जन्मस्थली, चार मुख वालें महादेव, हाजीपुर का केला के अलावे बहुत सारी चीज़े है वैशाली के पास जिसपर वैशाली-वाशी अपने को गौरवान्वित महसूस कर सके, लेकिन उन सब चीजों मे ऐतिहासिक,सामाजिक महत्व पर आधारित और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर लगने वालें विश्वप्रसिध "सोनेपुर मेला" वैशाली की खूबसूरती और ग्राम...ीण संस्कृति के बदौलत विकाश करने का अनुपम उदहारण प्रस्तुत करती है. शिक्षा और स्वास्थ्य को केन्द्रित गाँव में लगने वाला यह मेला समरसता का भाव पैदा करता है, दुर्भाग्य का विषय है मेला 9 नवम्बर से शुरु है लेकिन लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ चुप्पी थामें हुए है और बाकि तीनो बेबसी से इसे बर्बाद और खत्म होते देखकर भी मौन है |
सोनेपुर मेला केवल परम्परा नहीं बल्कि पौराणिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को विश्व पटल पर लाये जाने के बिहार-गौरव का परिचायक भी है। आईये आपको दैनिक जागरण और बीबीसी कि नज़रों से मेले कि सैर कराते है |
Dainik jagran link on mela:-सिर चढ़कर बोला लोक कला का जादू- http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8480581_1.html, ग्रामश्री मंडप में कलाकृति का अद्भुत नमूना- http://in.jagran.yahoo.com/news.../local/bihar/4_4_8490438_1.html, सोनपुर मेले में उमड़ी भीड़-http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8467151_1.html, स्नान घाटों पर दिखा आपसी रिश्तों का महासंगम-http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8470979_1.html, पंद्रह लाख श्रद्धालुओं ने लगायी नारायणी में डुबकी-http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8471090_1.html,नारायणी नदी में गजराज ने की जल क्रीड़ा-http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8471193_1.html,
हर उम्र के लोगों के लिए खास होगा सोनपुर मेला-http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_8461834_1.html http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2011/11/111118_sonepur_mela_gallery_psa.shtml , http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2010/12/101205_sonpur_fair_mb.shtml
....आईये इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोये 
 

Monday 14 November 2011

उजड़ते परिवार, सिसकती बचपन और बाल दिवस के मायने

बचपन में जब गाँव के स्कूल पढ़ने जाता था, तब एक पंक्ति जरुर गुनगुनाते हुए लोगो से सुनता था----"गइया बकरियां चरति जाये, मुनिया बेटी पढ़ती जाये " | लेकिन आज  न तो मुनिया बेटी को घर के काम करने लायक छोड़ा गया है और न ही पढ़ने लायक | मुनिया फैसन की दौर मे आगे बढ़ने के लिए लोन लेकर पढाई कर रही है, जिसके भविष्य का कोई पता नही |  पिताजी ज़मीन बेचकर लोन चुकता कर रहे है |.....इन सबके बीच उजड़ रहा है तो बस परिवार....आखिर नेहरु के जन्मदिन पर उजड़ते परिवार की ख़ुशी में बाल-दिवस मनाने के मायने क्या है जब ऐसी भयावह परिस्थितिया देश में मौजूद है ? ... दिन-ब-दिन महंगी और आम आदमी की पहुँच से दूर होती जा रही है शिक्षा, बचपन के सपने (डॉक्टर,इंजिनियर, अधिकारी बनने के)  मिट्टी मे मिलते जा रहे है और जब बचपन सिसक-सिसक कर दम तोड़ रहा है , फिर भी हम बाल-दिवस क्यों  मना रहे है ?
नेहरु के चेलों ने तो शिक्षा के अधिकार कानून के माध्यम से पूरी शिक्षा व्यवस्था का भी मजाक उड़ाने का काम किया है और सर्व शिक्षा अभियान की कमर तोड़ कर इसे "शिक्षा के लुटेरे ठेकेदारों" के हाथो में सौप दिया है|...आम आदमी की बात कहकर सरकार चलने वालों के राज़ में शिक्षा जैसी चीज़े गरीब जनता से जब दूर होती जा रही हो, तब बाल दिवस वास्तव में अपने मायने खो बैठती है | वैसे भी काहे का बाल दिवस, जिसने बाल और उसके बचपन कि खातिर कुछ किया ही नहीं बल्कि उलटे उसके भविष्य को कश्मीर, चीन जैसी समस्यायों को जूझने के लिए छोड़ दिया  हो !

Sunday 13 November 2011


शिक्षा के गिरते स्तर का एक नमूना ...इस विडियो को देखे
http://aajtak.intoday.in/videoplay.php/videos/view/64935/2/121/Phd-in-3-days-.html 


Wednesday 2 November 2011

मोबाइल संदेशों पर से सीमाबंदी हटने तक फोरम अगेंस्ट ऑटोक्रैसी ऑफ ट्राई करेगी विरोध

ट्राई द्वारा व्यक्तिगत मोबाइल संदेशों (SMS ) की सीमा १०० से बढाकर २०० करने के फैसले का फोरम अगेंस्ट ऑटोक्रैसी ऑफ ट्राई स्वागत करती है | ट्राई से फोरम यह मांग करती है कि इस सीमाबंदी को जल्दी से जल्दी हटाये क्यूंकि इस सीमाबंदी से विद्यार्थिओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को काफी परेसानियों का सामना करना पड़ रहा है | फोरम ने देश में सर्वप्रथम इस फैसले से हो रही परेशानियो को लेकर ट्राई ऑफिस पर प्रदर्शन करके आम जनता को इस फैसले से हो रही समस्यायों कि तरफ ध्यान दिलाते हुए विद्यार्थिओं के प्रतिनिधिमंडल के साथ ट्राई अधिकारिओं को ज्ञापन सौप कर इस फैसले को तुरंत वापस लेने कि मांग की थी |

विदित हो की पिछले दिनों ट्राई ने अवांछित SMS को आने से रोकने के साथ-साथ व्यक्तिगत SMS भेजने की सीमा १०० तक सीमित करने का फैसला लिया | इस फैसले के विरोध में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने ट्राई के इस अलोकतांत्रिक ,अव्यवहारिक और तानाशाही फैसले के विरोध करने और व्यक्तिगत SMS की सीमाबंदी हटाने हेतु "फोरम अगेंस्ट ऑटोक्रैसी ऑफ ट्राई " नाम से एक फोरम बनाकर इस फैसले का लगातार विरोध कर रही है | दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय से शुरु हुआ विरोध दिल्ली विश्वविद्यालय के अन्य कॉलेज मे, JNU, जामिया सहित ४ राज्यों में पहुँच  गयी थी तथा अभी भी फोरम के समर्थन में लोग लगातार आ रहे है |
ट्राई के इस पुरे फैसले में देश में हो रही तमाम लोकतान्त्रिक आंदोलनों को दबाने तथा विद्यार्थिओं की बढती सामाजिक सक्रियता कम करने की कोशिश नजर आती है | जिसके  विरोध में न केवल विद्यार्थी शामिल है बल्कि सामाजिक  कार्यकर्ताओं का सहयोग भी फोरम को मिल रहा है | महाविद्यालाओं में सामाजिक सक्रियता इस फैसले की वजह से बाधित हुई है जिसके कारण विद्यार्थिओं में काफी गुस्सा भी है |

फोरम ट्राई से मांग करता है कि वह व्यवसायिक संदेशों पर प्रतिबन्ध लगाये तथा ग्राहकों को उसकी पसंद की कोटि को अपने हिसाब से इस्तेमाल करने की सुविधा प्रदान करें | फोरम ट्राई से मांग करता की व्यक्तिगत SMS भेजने की सीमा तय करने की वजाए ग्राहकों को यह छुट दें कि वह असीमित सन्देश अपनी आवस्यकता के अनुसार भेज सके | फोरम ट्राई से जनभावनाओं का आदर करते हुए अविलम्ब इस फैसले को वापस लेने कि मांग करती है |
फोरम सीमाबंदी हटने तक अपना विरोध जारी रखेगा , जिसके अगले चरण में व्यापक पैमाने पर हस्ताक्षर अभियान चलाकर दूरसंचार मंत्री से मिलने के साथ साथ जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन करेगी |
भवदीय 
अभिषेक  रंजन - संयोजक -फोरम अगेंस्ट ऑटोक्रैसी ऑफ ट्राई
E-mail - arkumar87lsc@gmail.com,
Faculty Of Law
Delhi University. Delhi-7
Mob.-- +91-9717167232

Tuesday 1 November 2011

ट्राई के फैसले से छात्रों में हर्ष , सीमा 500 बढ़ाने की मांग


"Forum Against Autocracy Of TRAI" ,जो ट्राई द्वारा व्यक्तिगत संदेशो को भेजने की सीमा १०० किये जाने पर विद्यार्थिओं द्वारा बनायीं गयी थी , की एक बैठक आज शाम Law Faculty दिल्ली विश्वविद्यालय मे हुई, जिसमे ट्राई द्वारा व्यक्तिगत सन्देश भेजने की सीमा बढ़ाये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की गयी|  ट्राई के इस फैसले का आशिंक समर्थन करते हुए फोरम के सदस्यों  ने  कहा की २०० सन्देश सामजिक जीवन में सक्रीय लोगों के लिए बिलकुल ही अप्रयाप्त है, जिसकी सीमा कम से कम 500 तो करनी ही चाहिए थी . वैसे  फोरम की मांग है की यह सीमाबंदी किसी भी तरीके से जायज़ नहीं है, इसलिए इसे तुरंत वापस लिया जाये |  ट्राई द्वारा सीमाबंदी किये जाने के कारण सारी सामाजिक गतिविधियाँ पर बुरा असर पड़ा है जिसके कारण विद्यार्थिओं और सामजिक कार्यकर्ताओं में इस फैसले के ख़िलाफ काफी गुस्सा है | 
विदित हो की फोरम ने सर्वप्रथम व्यक्तिगत सीमाबंदी के ख़िलाफ पहले दिन से ही ( 27 सितम्बर ) दिल्ली विश्वविद्यालय में विरोध करना प्रारंभ किया था जिसके क्रम में पिछले २१ अक्तूबर को ट्राई मुख्यालय पर छात्रों के प्रदर्शन और ट्राई अधिकारी को ज्ञापन दिया गया था | 
 ट्राई का यह फैसला सराहनीय है लेकिन फोरम अपनी लड़ाई संदेशों की सीमाबंदी हटाये  जाने तक जारी रखेगी .
फोरम ट्राई से मांग करती है की वह व्यक्तिगत संदेशों की सीमा  को समाप्त करें तथा अवांछित संदेशों से मुक्ति दिलाने हेतु ठोस उपाय  करें .
बैठक में योगेन्द्र, नमन, कमलेश ,आदित्य ,अनुराग, प्रभात, आदर्श, ब्रिज, संतोष आदि शामिल थे . 

भवदीय ,
अभिषेक  रंजन, संयोजक -  Forum Against Autocracy Of TRAI

PRESS REALESE- "Forum Against Autocracy Of TRAI" a minor triumph over autocracy of TRAI


"Forum Against Autocracy of TRAI", a forum of students against new regulation of TRAI( where we cannot send more than 100 sms/day) , held a meeting in Law Faculty, Delhi University, Where the forum members welcomed the decision of TRAI of increasing the no. of sms in a day from 100 to 200. The forum members expressed their happiness over the decision of TRAI. It is significant to inform that "Forum Against Autocracy of TRAI" have began their first ground protest from Law Faculty, DU(27 Sept.,2011) to TRAI Office(21st oct.,2011) for increasing the no of individual sms. Forum however demanded that TRAI further should increase this limit of sms from 200 to unlimited, because 200 sms is not enough to satisfy the needs of daily users especially social activists, students and common people. TRAI should consider the sentiments of the people. 

Forum members also said that their protest will continue till TRAI  limitation called-off. Anurag, Yogendra ,Adarsh,Vikash Gautam, Prabhat, Anshu, Sanjay Jha, Aditya, Brij, Santosh were present in meeting




Regards
Abhishek Ranjan- Convener- Forum Against Autocracy of TRAI