Monday 21 November 2011

जो न कटे आरी से वह कटेगा बिहारी से।

 ठंड शुरू होने के साथ ही किस्म-किस्म की हिदायतों से सामना होता रहा है आपका। मौज में दी गयी हिदायतें कुछ इस तरह भी कि  "गर्म तासीर वाले मेवे का सेवन कीजिए" और फिर चलता है तो कुछ तरल पदार्थ भी आपके लिए उपलब्ध हैं। महंगाई की इस दौड़ में इन हिदायतों के सामने आने से आप थोड़ा गुस्से में जरूर आएंगे पर काहे का गुस्सा? इस मौसम में बिहार से जुड़े कुछ नारे और बिहार में उपजी कहावतों को सुनिए न, अपने आप आ जायेगी गर्मी।

सबसे पहले यह---- ""जो न कटे आरी से, वह कटेगा बिहारी से""। आरी और बिहारी वाले इस नारे का संबंध बिहार से जरूर है पर मजेदार बात यह है कि यह हिंदुस्तान और बिहार में नहीं चलता बल्कि पाकिस्तान में दौड़ता है। पाकिस्तान के करांची शहर में बिहार से गये मुसलमानों का काफी दबदबा है। वहां बड़ी हैसियत वाली पार्टी एमक्यूएम(MQM) में बिहारी मूल के नेताओं की संख्या अधिक है। चुनाव के समय पाकिस्तान में सिर्फ करांची में ही नहीं बल्कि अब कई इलाकों में भी यह नारा पूरी ताकत से गूंजता है कि "जो न कटे आरी से, वह कटे बिहारी से" । अब तो मलेशिया में भी इस नारे की जबर्दस्त अंदाज में ब्रांडिंग है। बिहारी कबाब वहां काफी लोकप्रिय है। बिहारी कबाब की ब्रांडिंग में इस नारे का खूब प्रयोग होता है। वह भी प्रीमियम क्वालिटी का कबाब। मस्त अंदाज में हैं बिहार में उपजी कुछ कहावतें। एक कहावत है----""" दमड़ी के बुलबुल टका चोथाई"""।  हिंदी में यह कहावत यूं बनती है --""नौ की लकड़ी नब्बे खर्च""। पर बिहारीपन लिए दमड़ी वाली कहावत भीतर तक जाती है। इसी तरह बिहार से उपजी एक कहावत है----"" बाप गले लबनी पूत के गले रुद्राक्ष""। बड़े मर्म के साथ है यह कहावत। बड़े स्तर पर व्यंग्य छिपा है इस बिहारी कहावत में। किसी भ्रष्ट व्यक्ति के पुत्र को सुना कर देखिए इस ठंड के मौसम में, फिर बिना गर्म तासीर वाले मेवे और तरल पदार्थ की गर्मी किस तरह से आती है। मौज भरे अंदाज में बनी इस बिहारी कहावत पर गौर कीजिए---"" सगरे खीरा खा के भेंटी तीत""। यानी पूरा आनंद ले लिया और आखिर में कह रहे मजा नहीं आया। संतोषी प्रवृत्ति किस तरह की है इस पर आधारित एक कहावत कुछ यूं है----""मार काट पिया तोरे आस""। यानी भला है बुरा जैसा भी है.। एक कहावत है---"" ठेस लगे पहाड़े, घर के फोड़ी सिलवट""।  यानी गुस्सा किसी और पर, निकले किसी पर। बिहार में उपजी कहावतों में समाज से जुड़े प्रसंगों को खास तौर पर जोड़ा गया है। सामाजिक विसंगति को दर्शाती एक कहावत है----""नोकरो के चाकर तेकरो लमेचर""। यानी नौकर के भी चाकर हैं उसके पास और यहीं चाकर के भी हैं सेवक|

आपको कैसी लगी अपनों की बोली और गाँव की भाषा को समर्पित यह लेख, जरुर बताये |(साभार --एक पत्रकार मित्र )

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