Saturday 19 November 2011

पलायन -- अपनों से बिछड़ने का दर्द और गरीबी की आग

                       किसी ने कहा है कि   --   
जब पैसे की तंगी से थोड़ी सी चुभन भी होती है ,
जब जिन्दगी बदतर हालातो में, लाचारी का रोना रोती है,
जब अपनों की एक झलक को, आँखे उम्मीद खो देती हैं,
जब भावनाए माथे की धूल को, अपने आशुं से धो देती है,
................तब ह्रदय का कोना-कोना अपनों की यादों में रो देती है !!
अपना घर सबकों प्यारा ही होता है | घर घास फूस की बनी हों या फिर बड़े बड़े कमरों में आधुनिक साज सज्जा के साथ ईट का बना हुआ, अपनी चीज़े अपनी ही लगती है | सुकून पाने का ख्याल अपने घर में ही आता है, दुशरे के यहाँ नहीं | दिन भर के थकान के बाद अपने परिवार के साथ रहने का और समय बिताने का मन सबका रहता है | जिन्दगी चलाने की खातिर पैसे कमाने के लिए घर छोड़ने का मन किसी का नहीं होता, लेकिन कमबख्त गरीबी के कारण भूख से बिलबिला रहे अपने और अपने परिवार के पेट की आग शांत करने के लिए घर से निकलना ही पड़ता है | सारे सपने और अरमान की बहते आशुं  की घूंट पीकर भी लोग घर से निकल पड़ते है | अपनों की यादें समेटे और उनकी भलाई व  सुनहरे भविष्य के सपने बुनते लोग घर से एक अनंत यात्रा पर, बिना किसी लक्ष्य और पूर्वनिर्धारित उदेश्यों के चल देते है |  लोग कहते भी है कि गरीबों का कोई लक्ष्य नहीं होता,उन्हें जो भी परिस्थियाँ वर्तमान स्थति से बेहतर दिखती है, वही उनके लिए उपलब्धि के समान हो जाती है | मुखिया जी ने पैसे खर्च किये है चुनाव लड़ने में, उन्हें पैसे दिए बगैर गाँव में काम नहीं मिल सकता | यहाँ तो चाय पिने और पिलाने की औकाद भी नहीं बची तो काम के लिए देने खातिर घुस के पैसे कहाँ से लायेंगी जनता? सारी सरकारी योजनायें रेडियो में सुनने भर है, बदलते भारत की गूंजती आवाज़ सिर्फ सुनाई देती है, दिखती नहीं | अगर दिखती तो कहाँ बदला मुन्ना की किस्मत मनरेगा से ? वह आज भी अकेले अपनी बीबी और 2 बच्चों की खातिर सारा दिन काम करने में लगाता है, फिर भी परिवार में न तो सुकून है और न ही ख़ुशी ! वह भी अपने बेटों को इंजीनियर बनाना चाहता है, उसे भी यह देखते हुए बड़ा फक्र महसूस होता जब उसकी बिटियां डॉक्टर बनती, वह भी ख़ुशी-ख़ुशी सपरिवार मनाली घुमने और काशी दर्शन हेतु यात्रा करने का शौक पालें हुए है | लेकिन दो समय की भूख शांत करने और अपनी जिन्दगी जीने के लिए जद्दोजहद कर रहा है |    इस परिस्थिति में घर छोड़ना मज़बूरी हो जाती है, आखिर करेंगा क्या बेचारा, अगर उसे घर में(गाँव में ) परिवार चलाने लायक कोई काम नहीं मिलेगा तो ?  ये एक मुन्ना की कहानी नहीं बल्कि हर गाँव के मुन्ना जैसे लोगों की हकीक़त है | चुनाव के समय बड़े-बड़े दावें और नारें देकर नेता बनने वालें लोग नज़र आते है | नेता बनते ही अपने घर खुशहाल करने की फ़िराक में जनता की आम समस्यायों और उनकी दैनिक परेशानियो को भूल जाते है | जब नेता और नेतृत्व ही जनता की बेहतरी के लिए उपाय करना छोड़ दें तो क्या होगा ? जब आम जनता के नाम पर राजनीति करके और गरीबी हटाओं के नारे के साथ सरकार बनाने वालें ही आम जनता की सुध लेना छोड़ दें, तब परिस्थितियां भयावह तस्वीर दिखाती है | जिस मनरेगा की ढोल पीटकर वर्तमान सरकार दुबारा सत्ता में आई, उसी के सरकार में उसी ग्रामीण विकाश मंत्रालय की जिम्मेदारी सँभालने वालें मंत्री के क्षेत्र में, जब भारत निर्माण का तो पता नहीं ग्रामीण विकाश की उजालें तक कही नहीं दिखी, तब समूचे देश का अंदाज़ा लगाया जा सकता है | ग्राम स्वराज्य और ग्राम पंचायते अपने लक्ष्यों और उदेश्यों से भटककर और सत्ता के विकेंद्रीकरण का नाजायज़ फायदा उठाकर गाँव की भलाई की वजाएं ग्रामीण जनता के मानसिक प्रताड़ना का केंद्रबिंदु सा बन गयी है | सहकारिता आन्दोलन से भी देश का कुछ ज्यादा भला नहीं हो पाया जबकि कागजों पर सहकारिता की किरण 25  करोड़ भारतीय तक पहुंची हुई बताई जाती है | मजदूरी के पैसे बैंकों से मिलने के बाबजूद काम का उचित मेहनताना नहीं मिल रहा है | पलायन का दौर जारी रहने के पीछे ये भी कारण है | पलायन सिर्फ "लुट वाली योजनायें" चलाने से नहीं बल्कि "बेरोजगार जनता की समस्यायों के छुटकारा पाने वाली योजनायें" चलाने से होंगी,जिसके लिए सरकार तैयार नहीं दिखती |   चमकते, बदलते, सँवरते भारत की पहचान गरीब और गरीबी है, लेकिन शहरों की चकाचौंध में हम इसे देख नहीं पातें | आखिर सरकार भी तो यही चाहती है कि गरीब और गरीबी बरक़रार रहे देश में, नहीं तो किस आम आदमी के हाथ के भरोसे राजनीती करेंगे ? भारत माता की जय उस आम आदमी की जय से सुरु होती है जिसने अपनी जय के साथ साथ भारत माता की जय लगाने का भी सपना पाल रखा है | अंतर बस इतना है कि वह उस उत्साह और विश्वाश के साथ जयघोष लगाने में सामर्थ्य रखते हुए भी उसकी आवाज़ उसका साथ नहीं दे रही, क्यूंकि वह चमकते और विकसित होते भारत में भी अपनी मुलभुत आवश्यकताओं रोटी, कपडा, मकान की खातिर तरस रहा है ,उससे वंचित है | आर्थिक पैकेज देने के वायदे सिर्फ कागजों तक सिमटी है और विकसित आधारभूत सरंचना के काम भविष्य के सरकारों के ठेके छोड़ दिया गया  है | देश के नव-निर्माण के काम में लगने वालें युवा और आम जनता जबतक सड़कों पर भटकते फिरेंगे तबतक हम ""भारत निर्माण"" की खोखली नारे ही लगा सकते है | पलायन का अनसुलझी कहानी ग्रामीण जनता का काम के लिए पलायन तक ही नहीं खत्म होती, बल्कि यह प्रतिभाशाली युवाओं के देश छोड़ने तक जारी है | देश में सबकुछ गलत ही नहीं हो रहा है लेकिन बहुत कुछ सही भी नहीं हो रहा है- इस बात में कोई संदेह भी नहीं है | समय की जरुरत और परिस्थति की मांग है कि स्थति बदलने के लिए गंभीर, निर्णायक और त्वरित करवाई की जाएँ, अन्यथा आन्तरिक खतरे उत्पन्न होने के साथ साथ आर्थिक महाशक्ति बनने के सपने भी मुंगेरी लाल के हसीन सपने की तरह अधूरे ही रह जायेंगे, फिर देश में कोई कलाम भी नहीं बचेंगे जो उत्साहवर्धन करते हुए दिखाई देंगे|

इसी मुद्दे पर अख़बारों की रिपोर्ट  की लिंक - विशेष संपादकीयः रोजगार तो देते नहीं, योजनाओं से नाम तो हटाएं प्रधानमंत्री- http://www.bhaskar.com/article/SPLDB-special-editorial-on-unemployment-2573949.html ,भास्कर श्रृंखला: भाग 1- हर साल काम के लिए तीन करोड़ लोग छोड़ रहे हैं घर-- http://www.bhaskar.com/article/SPLDB-out-shorted-news-series-2572730.html?SL2=, भास्कर श्रंखला: भाग 2- हजारों करोड़ की 12 योजनाएं फिर भी स्थायी काम नहीं- http://www.bhaskar.com/article/SPLDB-thousands-of-crores-2575828.html?SL2=,

No comments:

Post a Comment