Saturday 30 March 2013

माफ़ी देने की हास्यास्पद दलीलें


हम व्यक्तिगत तौर पर संजय दत्त के फैन है। उनकी फिल्मों का बेसब्री से इंतज़ार रहता है। हम उनकी हर फिल्म  देखते है लेकिन फिर भी यह मानते है कि अवैध तरीके से हथियार रखने और मुंबई धमाके के गुनाहगारों से सम्बन्ध रखने की वजह से संजय दत्त को मिली सजा से उन्हें किसी भी सूरत में माफ़ी नही मिलनी चाहिए। उनको माफ़ी मिलने से भारतीय संविधान पर विश्वास रखने वाले आम आदमी के बीच यह संदेश जाएगा कि भारत में "कानून का राज" विशेष व्यक्तियों के लिए विशेष व्यवहार करता है। कानून के प्रति आम जनता की आस्था को ठेस पहुंचेगी। उसे यह विश्वास होने लग जाएगा कि इस देश में कानून से बढ़कर स्टारडम है। ऊँची पहुँच, लोकप्रियता के सहारे कोई व्यक्ति कुछ भी करेगा, उसे माफ़ी मिलने की संभावना बनी रहेगी।    

अगर संजय दत्त को माफ़ी उनके स्टार होने की वजह से मिलता है तो वह निश्चित तौर पर कानून की नजर में समानता (भारतीय संविधान की अनु.14) के सिद्धांतों के विपरीत होगा, जो न्यायिक प्रक्रिया में देश के नागरिकों का क्या, विदेशियों के मामले में भी भेदभाव न करने की बात करता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि माफ़ी देने की बात न्यायपालिका के हिस्से बनकर अतीत में फैसले सुनाने वाले मार्कंडेय काटजू द्वारा हो रही है, वह भी कुतर्कों के सहारे।  

श्री काटजू का यह कहना कि संजय ने "मुन्ना भाई एमबीबीएस"  फिल्म के द्वारा गांधीगिरी को बढ़ावा दिया इसलिए उन्हें माफ़ी मिलनी चाहिए, नि:संदेह एक बेहद घटिया तर्क है जो न केवल हास्यास्पद है बल्कि न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाला है। अगर संजय को मुन्ना भाई एमबीबीएस फिल्म के द्वारा गांधीगिरी को बढ़ावा देने की बात कहकर माफ़ी दी जाती है तो उन्ही के  "खलनायक", "वास्तव" जैसे फिल्मों में किए गुंडागर्दी को भी ध्यान में रखना होगा। अगर एक फिल्म के सहारे उनको माफ़ी देने की मांग उठी है तो उसी तरह जिन फिल्मो में अपने अभिनय से उन्होंने गुंडागर्दी की है, उसके आधार पर उन्हें फांसी देने की मांग उठेगी। फिर इसी आधार पर कादर खान, प्रेम चोपड़ा, शक्ति कपूर को भी कठोर दंड देने की बात होने शुरू हो जाएंगे और फिल्मो में जिस हद तक के नकारात्मक अभिनय इन अभिनेताओं ने किया है उसके आधार पर इन्हें फांसी पर लटका भी दिया जायेगा।

जरुरत है, भावनाओं से ऊपर उठकर सोचने की। आखिर सर्वोच्च अदालत में संजय दत्त के काबिल वकीलों ने ऐसा कोई भी तर्क नही ही छोड़ा होगा जिनमें संजय को माफ़ी मिलने की कोई आशा हो! जब सर्वोच्च न्यायालय ने तमाम तर्कों को ठुकराते हुए और अपने तरफ से दरियादिली दिखाते हुए एक वर्ष की छुट दे दी है, खुद संजय ने भी सजा काटने की बात कही है, फिर भी माफ़ी देने के लिए शोर मचाना ठीक नही है। माफ़ी देने की दलीलों के साथ मुंबई धमाके में मारे गए लोगो के भी बच्चों, उनके विधवाओं, उनके परिजनों, प्रियजनों के दर्द को भी समझा जाना चाहिए।