Thursday 13 October 2011

एसएमएस के बहाने अधिकारों की कटौती

देश में जब तथाकथित लोकतान्त्रिक अधिकारों की लड़ाई में पूरा समाज और जनता एकजुट दिखाई दे रही है वैसे ही समय में ट्राई नाम के एक नियामक संस्था जो दूरसंचार मंत्रालय के अधीन कार्य करती है ने अपने एक फरमान से सारी कोशिशों पर कही न कही एक पूर्णविराम लगाने की साजिश रच रही है. अन्ना के हर  बोली पर सब आंख गराएँ बैठे है ,उनके प्रत्येक शब्दों पर विश्लेषण का कार्य जारी है लेकिन इन सबके बीच एक छोटी ही सही परन्तु महत्वपूर्ण विषय कही न कही हमसे छुट रही है लेकिन हमें कोई परवाह नहीं है. अपने एक दिशा निर्देश में ट्राई ने एक फैसला लिया जिसमे  एसएमएस की सीमा प्रति दिन 100 तक सीमित करना था  . एसएमएस की जब सीमाबंदी की जा रही थी तब न तो अधिकारों की लड़ाई लड़ने वालों की तरफ से कोई आवाज़ सुनाई दी और न ही लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई लड़ रहे लोगो के बीच से कोई सुगबुगाहट . सब के सब इसे परेशानियो  से  छुटकारा बताकर इस पुरे निर्णय को सही ठहराने पर तुले हुए थे . आखिर सरकार की मंशा भी तो यही थी की जिस तरह संसद मे हो-हंगामें के बीच महत्वपूर्ण निर्णय बिना बहस के ही पारित कर लिए जाते है उसी तरह यह फैसला भी बिना जनता की आम राय बनाये लागु कर दी गयी. अन्ना के शोर और  उसी के इर्द गिर्द चल रहे बहस के बीच एक बड़ा मुद्दा हाथो से फिसलता दिख रहा है  जिसके भविष्य में महत्वपूर्ण प्रभाव  पड़ने वाले है.
सब इस बात पर ख़ुशी जाता रहे है की चलो मुसीबतों का अंत हुआ.  मोटापा घटाने, बाल सही करवाने,नॉएडा और गुडगाँव में बिना किसी मंशा के ज़मीन और मकान खरीदने वाले लगातार आते रहने वाले संदेशो से छुटकारा मिला. परन्तुं इन खुशियों के बीच छिपे साजिश की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं गया की आखिर हमें मुसीबतों से छुटकारा दिलाते दिलाते हमें परेशान करने का एक बड़ा काम चुपचाप हो गया और हम  बस देखते रह गए. क्या वजहें हो सकती है  इस ख़ामोशी की, हम नहीं समझ पाये . लेकिन इन चुप्पियों  के बीच विधि संकाय (Law Faculty ),दिल्ली विश्वविद्यालय के  कुछ छात्रों ने अपनी ख़ामोशी तोड़ते हुए इस पुरे प्रकरण की निंदा की और इसके ख़िलाफ संघर्ष का ऐलान करते हुए  एक फोरम "" फोरम अगेंस्ट ऑटोक्रेसी ऑफ़ ट्राई (Forum Against Autocracy Of TRAI ) " बनाकर पिछले कई दिनों से अपनी खोये  अधिकारों को पाने का प्रयाश कर रहे है. संघर्ष  की यह चिंगारी धीरे धीरे ही सही लेकिन आगे बढती और फैलती चली जा रही है,जिसे विद्यार्थी समुदाय के साथ साथ सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी सहयोग और समर्थन मिल रहा है. सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच खड़े आर्थिक संकट की आग में घी डालने वाले इस फैसले से सारे जनतांत्रिक और सामाजिक आंदोलनों पर ग्रहण लग गया है क्यूंकि कुछ भी करने में सबसे विश्वस्त सहयोगी सन्देश की सीमाएं जो निर्धारित हो गयी है .

लोकतंत्र की सारी चूले जब हिली  हुई  दिख रहे है वैसे समय में आम आदमी के अन्य परेशानियो की तरफ से ध्यान हटाकर उसके अधिकारों मे ही कटौती कर इस  निर्णय ने बहुत कुछ सोचने पर मजबूर किया  है. देश में अन्य समस्याए भी है,जो अपने हल की तलाश  में दिन रात बाँट जोह रही है,लेकिन उन समस्यायों की तरफ कोई ध्यान ही नहीं है. आखिर महंगाई ,भ्रष्टाचार, बेकारी,भुखमरी जैसे समस्याएँ मुहँ बाये खड़ी है तब युवाओं को कुंठित करने के उदेश्य से मोबाइल सन्देश पर प्रतिबन्ध लगाना किस साजिश की ओर ध्यान दिलाता है,यह समझने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए ? 

आज जबकि समूचा विश्व एक गांव की शक्ल ले रहा है ऐसे में भारत भी संचार क्रांति के इस दौर में पीछे नहीं है। संचार आधारित युग में लोगों को एक-दूसरे से जोड़े रखने में मोबाइल फोन की उपयोगिता सबसे अधिक मददगार सिद्ध हो रही है। ऐसे समय में देशभर में मोबाइल मैसेज  की संख्या निर्धारित करने के ट्राई द्वारा लिए गए जन विरोधी और अव्यवहारिक फैसले के विरोध में आम जन विशेषकर युवा वर्ग काफी गुस्से में है। आखिर सन्देश भेजने का काम कोई बूढ़ा तो नहीं ही करता और न ही 8 -10 साल का बच्चा,तब आखिर इन संदेशो को जीवन में एक अनिवार्य मान कर उपयोग करने वाला युवा वर्ग पर ऐसी बंदिश क्यूँ?  अगर लगता है की यह तकनीक का गलत उपयोग है,तब रोड पर खीरे ककरी से भी कम दाम पर बिकने वाले सिम पर प्रतिबन्ध क्यूँ नहीं ? क्यूँ सस्ते सिम और कॉल रेट करके युवाओं को भटकाने का काम किया जा रहा है?  
सरकार द्वारा हाल में  जारी स्पष्टीकरण से यह साफ हो गया है की सरकार की मंशा सिर्फ आम आदमी के उपर बंदिश लगाना है,व्यावसायिक हितों को ध्यान में रख सन्देश भेजने वाली कम्पनियों  पर नहीं . सरकार कुछ शर्तों एवं शुल्क लेकर कम्पनियों को ज्यादा से ज्यादा सन्देश भेजने का छुट देने पर विचार कर रही है तो इससे तो यह समझने में कोई परेशानी नहीं होने चाहिए की  अवांछित संदेशो से आखिर मुक्ति मिली कहा ?  आज भी नियम लगने के बाद सन्देश बदस्तूर आने जारी है . जिस देश में खुलेआम स्पेक्ट्रम  के क्षेत्र में घुसपैठ होती हो (सीमावर्ती इलाकों में ) ,वहां आम आदमी पर प्रतिबन्ध लगाने की वजाए उन कमियों को सुधारने पर जोर देना चाहिए जिसके कारन  हमारी सूचनाये लीक होती  है.

4 महत्वपूर्ण पहलुओं को  समझने की जरुरत है इस निर्णय के -----

1)राजनितिक :- देश में एक नया दौर चला है. आम लोग सरकार की  गलत नीतियों  के खिलाफ अपने विचारों को जाहिर करने के लिए मोबाइल संदेशो का उपयोग कर रहे है . भ्रष्टाचार जैसे विषय इस मनोवृति में आग में घी डालने का काम कर रहे है. इसलिए लगता है कि कही न कही मंशा है की बढ़ रहे असंतोष को फैलने से रोकना. लोग आपके संपर्क के लोगों को  SMS करके धरना और प्रदर्शन की खातिर जुटा लें रहे है.मामला दूरसंचार मंत्रालय से सम्बंधित हो तो हमें कपिल सिब्बल जी के काबिलियत पर कोई संदेह भी नही होना चाहिए. बढ़ते राजनितिक संकट में  कमबख्त मोबाइल सन्देश राजनितिक कब्र खोदने में अपनी भूमिका न बना पाए इसलिए इस पर आंशिक प्रतिबन्ध लगाना ही शायद  उचित रास्ता बचा होगा.


2) सामाजिक :- युवाओं में अभी देश में व्याप्त अनेकानेक समस्यायों के कारण कही न कही सरकार की गलत कारनामे के खिलाफ गुस्सा है. लोग समाज की वर्तमान दुर्दशा को  सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट पर जाहिर कर रहे है, लेकिन सरकार को यह अच्छा नही लग रहा . फेसबुक और ट्विट्टर पर बैठ कर फालतू की गप्पेवाजी करने वाला युवा आजकल सड़कों  पर उतर कर प्रदर्शन कर रहा है . इन परिस्थितियों में इस नीति को  देखकर लगता है की वर्तमान नीति  युवाओं की सक्रियता को कम करने की बड़ी साजिश का परिणाम है. आखिर 2007 में लागु नीति  पुरे 4 साल में ढंग से लागु नहीं हो पाई तो जब  पुरे देश मे सरकार की गलत नीतियों के ख़िलाफ लोगों का गुस्सा दिख रहा है,ऐसे समय में जल्दीबाजी  में लागु किया गया यह निर्णय क्या साबित करना है,समझाने की जरुरत नहीं है ?


3) क़ानूनी :- यह नीति संविधान की अनुच्छेद  19 (१)(अ) एवं 21 का भी उलंघन करता है. क़ानूनी भाषा में कहे तो लोकतंत्र की मजबूती का सबसे मजबूत साधन अभिव्यक्ति  और संपर्क (expression & communication) की  स्वतंत्रता  है . मोबाइल सन्देश कही न कही इन्ही चीजों से सम्बंधित है, तो इस अधिकतम सीमाबंदी से आप लोकतंत्र को मजबूत बना रहे है या कमजोर बना रहे है ? आपको किसने अधिकार दे दिया कि  किसी के व्यक्तिगत संदेशो को भी परेशान करने वाले सन्देश मानकर उसपर पाबन्दी लगा दे? आप अगर किसी को १०० सन्देश नही भेज पा रहे है तो इसकी क्या गारंटी है कि हमारे मोबाइल पर लोगो के सन्देश आने बंद हो जायेंगे ?


4 )  आर्थिक :- दूरसंचार कंपनियों को फायदा पहुचाने के उदेश्य से किया गया यह निर्णय आम मोबाइल धारकों  की जेबें ढीली करने के उदेश्य से प्रेरित लगता है. आखिर क्या वजह हो सकता है की ग्राहकों को अधिकारिक छुट्टियों  के दिन अनगिनत सन्देश भेजने की छुट प्रदान की गयी है जबकि अभी तमाम प्रकार के एसएमएस टैरिफ प्लान के रहते भी त्योहारों के दिन कोई भी छुट नहीं मिलती और पैसे मेन बैलेंस से कटते है ? कही यह मोबाइल कंपनियों को खुलेआम लुटने की छुट देने के उदेश्य से तो नहीं प्रदान की गयी है ? व्यावसायिक संदेशो के प्रति भी सरकार का दृष्टिकोण साफ है कि हम उन्हें कुछ शर्तों और शुल्कों के साथ उनके सीमाबंदी मे छुट देने पर विचार कर रहे है . जब उन्हें छुट मिल रही है तो हमारे सन्देश भेजने के अधिकार में बाधा क्यूँ ?
                    अगर शहर में एक साथ कई हत्याएं 6 इंच के चाकू से की जा रही है तो क्या चाकू पर प्रतिबन्ध लगाने से समस्याएं समाप्त हो जाएगी या हत्यारे को पकड़ने   से - इसमें भेद करना जरुरी है क्यूंकि यही मामला ट्राई के इस फैसले में भी दीखता है .ट्राई ने आन्तरिक सुरक्षा के नाम पर पर अपनी सुरक्षा दुरुस्त करने की वजाए हमारे ही व्यक्तिगत संदेशो की सीमाबंदी करने पर तुली हुई है . 21वी सदी में इस तरह के फैसले लेना कही न कही यह आशंका पैदा करती है कि हमें हमीं में संकुचित  करने का प्रयास चल रहा है जिसे एक सजग नागरिक के नातें हमें चुपचाप नही स्वीकार करना चाहिए ,क्यूंकि इन्ही दलीलों के आधार पर अब अगली बारी हमारे फ़ोन करने और ईमेल भेजने की मात्रा निर्धारित करने की फैसलों की  होगी.
सवाल संदेशो की मात्रा से ज्यादा उस अधिकारिक संवैधानिक भाषा के उपर लगे प्रश्न चिन्ह  का है जो गरिमा के साथ जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करती है.
हमें यह तय करना ही पड़ेगा कि हम सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत में रहते है या  तालिबान मे ,जहा व्यक्तिगत संपर्क रखने के सबसे सस्ते और सुविधाजनक  माध्यम मोबाइल संदेशों पर प्रतिबन्ध लगाये जा रहे है.

आग्रह है हमारे इस प्रयास  को आप अपना सहयोग और समर्थन प्रदान कर इसके मुकाम तक पहुँचाये.

अभिषेक  रंजन , संयोजक -"Forum Against Autocracy of TRAI"
Faculty Of Law,
North Campus,Delhi University. Delhi-110007,
Mob.-- +91-9717167232,
E-mail - arkumar87lsc@gmail.com,

©लेखक (अभिषेक रंजन) -बिना अनुमति के प्रकाशन न करे 

1 comment:

  1. सत्ता की राजनीति के लिए जनसरोकारहीन फैसले का बड़े स्तर पर विरोध होना चाहिए। आपके द्वारा चलाया जा रहा आंदोलन जायज़ भी है और तार्किक भी।
    वर्तमान समय में लोकतंत्र की जो परिभाषा सरकार के द्वारा पेश की जा रही है वह एक आम नागरिक के गले उतरने के लायक नहीं है ऐसे में खुले विमर्श की आवश्यकता है, और मैं मानता हूं कि संचार के साधन बहस को आसान बनाते हैं।

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