Tuesday 21 February 2012

आइआइटी परीक्षा मे सुधार के नामपर ग्रामीण प्रतिभा को कुचलने की साजिश

कुछ दिनों पहले यूपीएससी की परीक्षा में अंग्रेजी को अनिवार्य विषय बनानेवाली फैसलें लेकर सरकार ने ग्रामीण पृष्टभूमि, विशेषकर हिंदी भाषी क्षेत्रों के विद्यार्थियों के अधिकारी बनने के सपनों को कुचलने का काम किया था | अंग्रेजी को अनिवार्य करने वाली उस फैसले ने हिन्दीभाषी गरीब छात्रों के पढ़ लिखकर आगे बढ़ने के उत्साह को निराशा में बदल डाला था | इस फैसलें से विद्यार्थी उबरने की कोशिश ही कर रहे थे कि सरकार एक और फैसला आइआइटी की गुणवत्ता सुधारने के नामपर करने जा रही है, जिसका मकसद  ग्रामीण क्षेत्रों से आने वालें विद्यार्थिओं के इंजिनियर बनने से रोकना है | केंद्र सरकार द्वारा आइआइटी  एवं अन्य प्रमुख इंजीनियरिंग कालेजों में नामांकन के लिए एक नये प्रस्ताव तैयार किये जा रहे है, जिसमे आइआइटी के चयन प्रणाली में सीबीएसई के अंकों को 40 प्रतिशत तरजीह देने का प्रस्ताव रखा गया है। साथ ही आइआइटी में नामांकन के लिए अब छात्रों को दो परीक्षा भी देनी होगी। आइआइटी की नयी चयन प्रणाली के लागु होने से छात्रों में ट्यूशन की प्रवृति बढ़ेगी एवं आइआइटी में नामांकन के लिए दो परीक्षा लेने से छात्रों पर दबाव भी बढ़ेगा। शिक्षा के व्यवसायीकरण को बढ़ावा देने वाली और ग्रामीण प्रतिभा को हतोत्साहित करनेवाली इन् सरकारी प्रस्ताव से ग्रामीण छात्रों का सर्वाधिक नुकसान होगा तथा वे सबसे ज्यादा प्रभावित भी होंगे। पुरे फैसले को गौर से समझने पर मालूम पड़ता है की कुकुरमुत्ते की तरह उग आए लाखों ट्यूशन मालिकों के गिरोह
द्वारा किये दबाब के मद्देनज़र इन प्रस्ताव को लाये गए है ।
                                 गाँव की प्रतिभाये अपने दम पर आगे आने लगी है जिसकी वजह से शहरी खाए पिए अघाए लोगो के बच्चे आइआइटी जैसी परीक्षाये पास नहीं कर पा रहे है| प्रतिभा को दरकिनार कर पैसे वालें और महंगे स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चो को किसी भी तरह  इंजिनियर बनाने वाली मानसिकता इस फैसलें मे भी काम कर रही है, जो यू.पी.एस.सी. के मामले मे सरकार द्वारा लिए गए पिछले फैसलों मे भी देश ने देखा था | इसके पहले अंडे बेचकर, अख़बार बेचकर और अन्य तमाम आर्थिक संकटों को झेलते हुए भी ग्रामीण पृष्ठभूमि के बच्चे यू.पी.एस.सी. के कठिन परीक्षायों में अपनी मेहनत के बदौलत उतीर्ण हो जाते थे जबकि महंगे ट्युसन पढ़ने वाले अमीरों के बच्चे मुहं देखते रह जाते थे | फिर सरकार के मंत्री और वहां बैठे प्रसासनिक पदाधिकारियों ने गरीब किसानों के बेटों-बेटियों की आंख मे धुल झोकते हुए और तथाकथित प्रसनिक सुधार समिति की रिपोर्ट का हवाला देकर अंग्रेजी को अनिवार्य बना डाला | गाँव से आनेवालें बच्चे अंग्रेजी के मामले मे थोरे ढीले पड़ जाते है जिसकी वजह से अब उन कुटिल मानसिकता के लोगो की आकांक्षाएं पूरी हो गयी जो किसानो, मजदूरो के बच्चो को उच्च पदों पर चयन होते देखना पसंद नहीं करते थे | इसी प्रकार की साजिश आइआइटी की चयन प्रक्रिया मे बदलाव करके फिर से दुहरायी जा रही है | इससे पहले भी आइ.आइ.टी. ने बारहवी में 60 प्रतिसत अंक को अनिवार्य बनाकर हजारों प्रतिभाशाली छात्रों के आइ.आइ.टी. जैसे संस्थानों में प्रवेश का रास्ता बंद कर दिया था | अगर सरकार को ऐसे कदम उठाने ही थे तो चयन प्रणाली में बदलाव लाने से पहले सभी राज्य  परीक्षा बोर्डों की मूल्यांकन प्रणाली को समान करनी चाहिए थी ताकि पुरे देश मे एक ही पद्धत्ति से विद्यार्थिओं को अंक प्रदान किये जाते| सरकार ने ऐसा क्यों नहीं किया इसका मतलब साफ है की इस फैसले का मकसद एक खास वर्ग को लाभ पहुचना था । प्रत्येक राज्य में मूल्याङ्कन पद्धत्ति अलग अलग है जबकि सी.बी.एस.ई. थोक मात्र में उदारता पूर्वक बोरे खोल के नंबर देता है | जब तक सीबीएसई एवं राज्य सरकार की मूल्यांकन प्रणाली समान नहीं होगी तबतक अधिकांश राज्यों को इसका नुकसान उठाना परेगा, जिसकी कीमत सुपर-३० जैसे संस्थानों में पढ़कर निकलनेवालें उन ग्रामीण बच्चों पर भी पड़ेगा जो आर्थिक संकटों की मार झेलने के बाबजूद इंजिनियर बनने का सपना देखते है और संस्थान की देखरेख में दिन रात मेहनत करते है। ऐसे लाखों बच्चे है जो 60-75 फीसदी अंक लाने के बाबजूद आइआइटी की रेस मे उन बच्चों से कही आगे है जिन्होंने 90 से 99 फीसदी अंक बारहवी की परीक्षायों में पाए है | सरकार को इस प्रकार की दूरगामी और व्यापक प्रभाव पड़नेवाली नीतियों को बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए था कि उसके फैसले ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के छात्रों में भेदभाव तो नहीं पैदा कर रहा ? अगर उसके मकसद शहरी बच्चों को ही ध्यान में रख नीतियाँ बनाने का है तो यह विभाजनकारी नीतिगत फैसला है तथा इसका पुरजोर विरोध करने के साथ साथ कड़ी-से-कड़ी शब्दों में निंदा होनी चाहिए। मैं तमाम छात्र संगठनों, राजनितिक दलों और बुद्धिजीविओं से इस फैसले के ख़िलाफ अपना मत प्रकट करने तथा फैसले को वापस लेने हेतु सरकार पर दबाब बनाने की अपील करता हूँ | सरकार से भी आग्रह है की इस नकारात्मक प्रभाव पड़ने वाली फ़ैसले को तुरंत वापस ले तथा सभी राज्यों के बोर्ड की अंक प्रणाली एकसमान करें |

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