Saturday 4 May 2013

न्याय पाने की उम्मीदों की लौ जलाते डीयू लॉ फैकल्टी के छात्र

मुंबई हाई कोर्ट के एक प्रसिद्ध जज जस्टिस मदन लक्ष्मणदास तहिलियानी ने 30 नवम्बर, 2011 को एक बहुत ही ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। उन्होंने चोरी के आरोप में शक के आधार पर गिरफ्तार किए गए और 10 वर्ष जेल में काटने वाले मुहम्मद अल्ताफ खान को बरी कर दिया। अल्ताफ 2001 में जब बीस वर्ष का था, तब पुलिस ने उसे गिरगांव इलाके में हुई एक चोरी की वारदात में शक के आधार पर गिरफ्तार किया था। उस समय मुहम्मद खान की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वो अपने लिए कोई अच्छा वकील खड़ा कर सके, जिसकी वजह से सेशन कोर्ट में अल्ताफ का पक्ष नही सुना गया। जस्टिस तहिलियानी ने अल्ताफ को बरी करते हुए कहा कि खान को सही कानूनी सहायता नहीं दी गयी। उनके अनुसार, उस समय के सेशन कोर्ट के जज के लिए ये आवश्यक था कि वो कोर्ट द्वारा नियुक्त वकील द्वारा शिकायतकर्ताओं को क्रास एक्सामिन करने का अवसर देते, जो किया ही नहीं गया। इतना ही नहीं खान को उसके नागरिक अधिकारों के विषय में भी बताया नहीं गया जबकि मुफ्त कानूनी सहायता इस देश के हर नागरिक का अधिकार है, जो समय पड़ने पर उसे मिलनी चाहिए। जस्टिस तहिलियानी ने कहा कि सामान्य रूप से ऐसी अवस्था में मुझे ये केस सेशन कोर्ट के पास भेज देना चाहिए ताकि वो दोबारा पूरे मामले की छानबीन करें, लेकिन ये आरोपी मुहम्मद अल्ताफ खान के साथ अन्याय होगा, क्योंकि वो पहले ही दस वर्ष जेल में काट चुका है। अपने इस वक्तव्य के साथ जस्टिस तहिलियानी ने मुकदमा खारिज करते हुए खान को मुक्त करने का आदेश दिया। जस्टिस तहिलियानी वही जज हैं जिन्होंने कसाब का मुकदमा सुना और अंत में सजा-ए-मौत सुनाई।

थोड़ा अटपटा लगा होगा कि जस्टिस तहलियानी और अल्ताफ खान के केस का जिक्र यहाँ क्यों किया जा रहा है। जस्टिस तहलियानी और अल्ताफ खान के केस का जिक्र यहाँ इसलिए किया गया कि देश में कानून का राज या ‘रूल ऑफ लॉ’ सिर्फ कागजी अवधारणा नहीं बल्कि हर व्यक्ति के मन में कानून के प्रति इज्जत और न्याय पाने की उम्मीदों के लौ जलाए रखना है। अल्ताफ जैसे न जाने सैंकड़ों लोग आज मुफ्त कानूनी सहायता न मिलने या इसकी जानकारी न रहने की वजह से न्याय से वंचित है। 

मुफ्त कानूनी सहायता की अनोखी पहल

दिल्ली विश्वविद्यालय(डीयू),नार्थ कैम्पस के आसपास रहने वाले लोग दिल्ली विश्वविद्यालय को सिर्फ पढ़ने-पढ़ाने का एक जगह मानते थे। डीयू का मतलब उनके लिए सिर्फ इतना ही रहता था कि साल में एकबार होनेवाले फेस्ट में बाहर से आनेवाले कलाकारों को एक बार देखने, सुनने के मौके किसी तरह मिल जाए। लेकिन पिछले कुछ महीनों से डीयू के प्रति कुछ लोगो के सोचने के मायने बदल गए है। उनकी नजरे अब ज्यादा बेसब्री से छात्रों का इंतजार करती नजर आती है। बस इस उम्मीद में कि ये हमारी मदद करेंगे। फरियाद सुनेंगे। कोशिश करेंगे हमारी समस्यायों को दूर करने की। अगर ये हमारी मदद नहीं भी कर पाए तो कम से कम झूठे वादें करके, हमें ठगकर, अपना उल्लू सीधा तो नही ही करेंगे।        

डीयू के प्रति यह बदला नजरिया किसी चमत्कार का नतीजा नही बल्कि लॉ सेन्टर-एक के शिक्षकों व छात्रों के अथक परिश्रम का परिणाम है जो ‘मुफ्त कानूनी सहायता केंद्र’ के माध्यम से आर्थिक, शैक्षणिक रूप से कमजोर और कानूनी जानकारी के मामले में बिल्कुल अनजान लोगों की मदद करने में निःस्वार्थ भाव से जुटा है। लॉ सेन्टर-एक की प्राचार्या और समाजिक कार्यों के प्रति अपनी गहरी निष्ठा रखनेवाली प्रो. वेद कुमारी के मार्गदर्शन में चलनेवाला यह केंद्र, पी बी पंकजा, सुमन कुमारी, निराती गुप्ता, अजय कुमार, संजीत, पूनम दास, कुसुमलता, नरेन्द्र कुमार जैसे उर्जावान शिक्षकों से सुसज्जित है तो वही प्रियांशु, कमलेश, पावनी पोद्दार, राहुल, आदित्य, पवन, सुरप्रीत, अंकिता सहगल जैसे सैंकड़ों युवाओं से लैस है जो निरंतर इस कानूनी सहायता केंद्र से लाभान्वित हो सकने वाले लोगो की पहचान करने, उनकी समस्यायों को उचित फोरम तक पहुँचाने में सक्रीय रहते है। आज अमूमन प्रत्येक रविवार को छात्र-छात्राएं गली-कूचियों में लोगों की समस्यायों को कलमबद्ध करते नजर आ जाएंगे जिसे ‘आउट-रिच प्रोग्राम’ का नाम दिया गया है। 

क्यों शुरू हुई मुफ्त कानूनी सहायता कार्यक्रम

दो वक्त की रोटी का उपाय करने में व्यस्त आम आदमी का आम जीवन न जाने कितनी कठिनाईयों से जूझता रहता है। वह कभी बढ़ती महंगाई से परेशान रहता है तो कभी मजबूरी में अपने परिवार का उचित भरण-पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने में विफल रहने पर। ऐसी परिस्थितियों में बीमारी और कानूनी पचड़े़ उसकी जिन्दगी तबाह-बर्बाद कर देती है। यह आम धारणा  है कि गरीबों का सबसे बड़ा कोई दुश्मन है तो वह है उचित भोजन के अभाव और स्वस्थ वातावरण की वजाए मजबूरी में गंदगी के बीच जीवन यापन करने की वजह से अस्पताल और छोटे-मोटे झगड़े-फसाद में फंसकर कोर्ट कचहरी के चक्कर में फंसना।  स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता अभियान चलने व हर इलाके में अस्पताल खुलने से पहली समस्या कुछ हद तक नियंत्रण में आ गई है लेकिन कानूनी जानकारी का अभाव व उसकी वजह से तमाम तरह की दिक्कतों से सामना करने का सिलसिला अभी भी जारी है।
  
इसलिए जरूरतमंद, गरीब और पिछड़े वर्ग के लिए, विशेष तौर पर महिलाओं को मुफ्त में कानूनी जानकारी उपलब्ध करवाकर न केवल उनके मौलिक अधिकारों की जानकारी से उन्हें लैस कराया जा रहा है बल्कि उनकी समस्यायों के समाधान हेतु भी उचित सलाह व मार्गदर्शन दिए जा रहे है।

मिल रही है परेशानियो से निजात

जरूरतमंद लोगो को मुफ्त कानूनी सुविधा मिलने से न केवल उन्हें आर्थिक परेशानियों से निजात मिलती है बल्कि समय रहते न्याय पाने की तरीकों की जानकारी भी मिलती है। मुफ्त सहायता केंद्र के माध्यम से राशन कार्ड, वृद्धा पेंशन कार्ड बनवाने में मदद से लेकर तलाकशुदा औरतों के भरण-पोषण मुहैया करवाने, झूठे मुकदमे से न्याय पाने के लिए कानूनी तरीके अपनाने की सलाह तक शामिल है। दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकार (डीएलएसए) के सहयोग से चलाए जा रहे इस केंद्र में छात्रों द्वारा आउट-रिच प्रोग्राम के माध्यम से चिन्हित लोगो की समस्यायों को वजाप्ता मजिस्ट्रेट द्वारा सुनी जाती है और आवश्यक करवाई हेतु उचित फोरम पर भेजा जाता है। पिछले एक वर्ष में लगभग 300 लोगों की समस्यायों को चिन्हित करने का काम सहायता केंद्र के स्वयंसेवकों ने किया है जिनमे कई को न्याय मिले है और कई मामले को उचित फोरम तक पहुँचाने में सफलता भी मिली है।

नुक्कड़ नाटक, पेंटिंग, स्लोगन आदि माध्यमों से भी केंद्र से जुड़े छात्र विधिक जागरूकता में सक्रिय है। सभी सोशल नेटवर्क के माध्यम से भी छात्र समय समय पर लोगों को जानकारी देते रहते है। फेसबुक पर बना पेज भी लोगो को कानूनी जानकारियों को देने संबंधी इस काम में मदद कर रहा है।   

विद्यार्थियों द्वारा समाज सेवा की लिखी जा रही है नई इबारत

देश में जब कभी भी शिक्षा के वर्तमान हालात पर चर्चा होती है तो यह बात सामने आती है कि आज के जमाने में व्यक्ति के पास डिग्री तो होती है परन्तु अधिकांश के पास सामाजिक सामान्य ज्ञान की जानकारी तक नहीं होती। मोटी-मोटी किताबें पढ़कर अक्ल तो आ जाती है लेकिन समाज की जरूरतों, उसकी समस्यायों को समझने में रंग-बिरंगे डिग्रीधारी अपना दिमाग नहीं लगा पाते या यूँ कहें उनको इसकी समझ नही रहती। एक वकील के हैसियत से जब हम इन परिस्थितियों का आंकलन करते है तो पाते है कि एक सफल वकील, एक सफल समाजसेवी भी होता है। उसका समाज से न केवल जड़ाव होता है बल्कि वह समाज की जरूरतों व उसकी समस्यायों के लिए जरुरत पडने पर आगे आता है, न्याय दिलाने के लिए लडता है। केवल सामाजिक हितों के लिए ही नहीं व्यावसायिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए एक वकील समाज से जुडा रहता है। ऐसे में कानून के विद्यार्थी के नाते समाज की जमीनी सच्चाई से रुबरु होने, समाज के दबे-कुचले, उपेक्षित, निरक्षर लोगो की मदद करने और उन्हें सहायता उपलब्ध करवाने के लिए शुरू की गई मुफ्त सहायता केंद्र के मायने किताबों की दुनिया से ज्यादा अलग नही है।

मुफ्त कानूनी सहायता केंद्र के माध्यम से छात्र-छात्राएं न केवल नागरिक कर्तव्य का निर्वहन कर रहे है बल्कि जीवन में कुछ अच्छा करने और अच्छा बनकर समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा भी पाते है। समाज की सेवा करने का माध्यम बना यह केंद्र दिखावे के लिए नहीं, बल्कि आत्मसंतुष्टि के लिए, कुछ सिखने, जानने, समझने का एक मंच बना है, जिसके प्रति लॉ सेंटर में पढ़ने वाले सभी छात्रों को गर्व है। बिना किसी प्रलोभन-पुरस्कार पाने की उम्मीद लिए आज अनेक विद्यार्थी अपनी पढाई के व्यस्त दिनचर्या से समय निकालकर इस केंद्र के नियमित कार्यों में जुटे है। जो विद्यार्थी इस केंद्र का हिस्सा नहीं भी है, उन्हें भी इस केंद्र की गतिविधियों से अवगत होते रहने में दिलचस्पी रहती है जो केंद्र के प्रति छात्रों के आकर्षण को बताता है।  

उम्मीद है कि यह मुफ्त कानूनी सहायता केंद्र लोगो की समस्याओं का समाधान का एक प्रमुख केंद्र बनेगा। लोग मुफ्त में न केवल कानूनी सहायता पाएंगे बल्कि समाज में कानूनी जागरूकता के अग्रदूत भी बनेंगे। पिछले दिनों केंद्र को कानूनी सहायता प्रदान करने संबंधी अच्छे कार्यों के लिए मिले प्रोत्साहन रूपी पुरस्कार केंद्र की सफलता की छोटी सी बानगी मात्र है। इसे एक लंबा सफर तय करना है। तबतक, जबतक की हर एक नागरिक कानूनी तौर पर जागरूक न बन जाए।

http://www.janokti.com/featured/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A4%B0/ 

http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/Jansunwayi/entry/%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%AF-%E0%A4%95-%E0%A4%89%E0%A4%AE-%E0%A4%AE-%E0%A4%A6-%E0%A4%95-%E0%A4%B2-%E0%A4%9C%E0%A4%B2-%E0%A4%A4-%E0%A4%A1-%E0%A4%AF-%E0%A4%B2-%E0%A4%AB-%E0%A4%95%E0%A4%B2-%E0%A4%9F-%E0%A4%95-%E0%A4%9B-%E0%A4%A4-%E0%A4%B0

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