Tuesday, 30 October 2012

आश्वासन नहीं, नवरूणा चाहिए

जिस बेटी के सुनहरे सपनों को सुनकर माँ की आँखों में खुशी और चेहरे पर मुस्कराहट होती थी। आज वही मां पिछले 42 दिनों अपनी बेटी के गायब होने से चौबीसों घंटे सिर्फ रोती और विलखती रहती है। उसके मुँह से एक ही शब्द निकलते हैं मेरी बेटी कहां है, कोई तो बताए कहां है..वह किस हालात में होगी..यही शब्द बोलते-बोलते वह रो-रो कर बेहोश हो जाती है। लेकिन उसके रोने का न ते वहां का प्रशासन द्रवित हुआ और न ही वहां की सरकार। सब कुछ वैसे हो रहा है जैसे सरकारी तंत्र का पुराना रिकार्ड रहा है,या यूं कहे तो हालात उससे भी खराब है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को शिकायत 


19 सितम्बर को की गयी FIR की कॉपी 







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